सोमवार, 28 मई 2018

एफिल टाॅवर से जुङे 30 रोचक तथ्य।। 30 Amazing Facts About Eiffel Tower In Hindi




नमस्कार दोस्तो में योगेन्द्र एक बार फिर से आपका स्वागत करता हुं अपने ब्लाॅग गजब दुनिया पर। दोस्तो पिछले पोस्ट में मैने आपको मिस्त्र के पिरामिङस के बारे में कुछ रोचक तथ्य बताऐ थे। आशा करता हुं आपको जानकारी अच्छी लगी होगी। तो चलिऐ दोस्तो आज जानते हैं एफिल टाॅवर के बारे में कुछ रोचक तथ्य।





1 . फ्रांस की राजधानी पेरिस में स्थित एफिल टाॅवर को वैसे तो किसी पहचान की जरूरत नही हैं. जिस तरह अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ताजमहल भारत की पहचान हैं. ठीक उसी तरह एफिल टाॅवर भी फ्रांस की पहचान हैं।

2 . एफिल टाॅवर पेरिस में स्थित एक लोहे का टाॅवर हैं. इसका निर्माण सन् 1887 से 1889 के दौरान शैम्प-दे-मार्स में सीन नदी के तट पर हुआ।

3 . एफिल टाॅवर का नामकरण इसको बनाने और ङिजाईन करने वाली कम्पनी के मालिक गुस्ताव एफिल के नाम पर पङा।

4 . जब एफिल टॉवर का निर्माण हुआ उस समय वह दुनिया का सबसे ऊँचा ढाँचा था. उस समय टॉवर की ऊँचाई 300 मीटर और एंटीना के साथ 324 मीटर थी. लगभग 981 फीट जो की एक 81 मंजिला इमारत की ऊँचाई के बराबर है।

5 . यह टाॅवर साल के 365 दिन पर्यटको के लिऐ खुला रहता है. और हाँ यह टॉवर पर्यटकों द्वारा टिकट खरीद के देखी गई दुनिया की सबसे खूबसूरत जगहो में पहले स्थान पर है।

6 . सन् 1889 से 1930 तक यह टाॅवर दुनिया का सबसा ऊँचा ढाँचा हुआ करता था. 1931 में इसकी ऊँचाई को मात देते हुऐ इसकी जगह न्यूयार्क की एम्पायर स्टेट 381 मीटर ने ले ली।

7 . 2015 के सर्वे के अनुसार एफिल टाॅवर को लगभग 6.91 मिलियन लोग हर साल देखने आते हैं।

8 . इस टावर में पर्यटकों के घुमने के लिये 3 लेवल है. जिसमे पहली मंजिल और दुसरी मंजिल पर सिर्फ रेस्टोरेंट हैं. इसकी सबसे उपरी मंजिल सतह से 276 मीटर ऊँची है। और साथ ही इसकी छत को पर्यटकों के लिये काफी अच्छी तरह से सजाया गया हैं. पहली और दूसरी मंजिल पर लिफ्ट या सीढियों से जाने के लिये पर्यटकों को टिकट लेनी पड़ती है. निचली सतह से पहली मंजिल के बीच तक़रीबन 300 सीढियाँ है. और इतनी ही पहली से दूसरी मंजिल तक भी है। उपरी सतह पर भी सीढियाँ बनी हुई है।

9 . एफिल टावर की लिफ्ट एक साल में लगभग 103000 किलोमीटर का सफर तय करती हैं जोकि धरती की परिधि से 2.5 गुणा ज्यादा है।

10 . हर 7 साल में एक बार टावर को पेंट किया जाता है. जिसके लिये लगभग 60 टन पेंट की जरुरत पङती है।

11 . 72 इंजीनियर वैज्ञानिक और गणितज्ञों का नाम टावर की एक साईङ में लिखा गया था. जिन्होंने इस टावर के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

12 . हर रात रौशनी से भरे इस टावर में लगभग 20000 लाइट बल्ब का उपयोग किया जाता है.जिनकी जगमगाहट रात के समय इस टावर की खूबसूरती में चार चांद लगा देती है. कई खास मौकों पर इसमें कई अलग अलग रंग भी भरे जाते हैं।



13 . गुस्ताव एफिल ने तीसरी मंजिल का छोटा सा भाग अपने दोस्तों के मनोरंजन के लिये रखा था. उसे भी कुछ समय बाद आम जनता के लिये खोल दिया गया।

14 . एफिल टावर को फ्रांस की आजादी के 100 साल पुरे होने के उपलक्ष्य में बनाया गया था।

15 . एफिल टाॅवर को केवल बीस साल के लिए ही बने रहने की इजाजत दी गई थी. सन् 1909 में समय सीमा पूरी हो जाने के बाद इसे गिरा दिया जाना था. लेकिन बीस सालों में इस टावर की लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि इसे गिराने का विचार रद्द कर दिया गया।

16 . लोहे से बने इस टावर को आयरन लेडी के नाम से भी जाना जाता है. इसके निर्माण के लिए 7300 टन लोहे का इस्तेमाल हुआ था।

17 . सन् 1921 में यहाँ से फ्रांस का पहला रेडियो का प्रसारण हुआ था. हालांकि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इस पर काफी खतरा मंडराता रहा. फ्रांस की सेना को इस बात का डर था कि हिटलर की सेना एफिल टावर को सूचना निकलवाने के लिए इस्तेमाल कर सकती है. इसे नष्ट करने के आदेश भी दिए गए थे. लेकिन एफिल टावर इस बुरे वक्त से बिना किसी नुकसान के बाहर निकल आया।

18 . इसके उदघाटन के बाद से अब तक इसे लगभग 250 मिलियन लोग देख चुके है।

19 . एफिल टावर एक वर्ग में बना हुआ है. जिसके हर किनारे की लंबाई 125 मीटर है. 116 ऐंटेना समेत टावर की ऊँचाई 324 मीटर है. और समुद्र तल से 33,5 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।

20 . मेटल से बने होने के कारण यह ठंङ के मौसम में लगभग 6 इंच तक सिकुङ जाता हैं।

21 . एफिल टावर का वजन लगभग 7500 टन है और एफिल टावर की चोंटी से 90 किलोमीटर दुर तक देखा जा सकता है।

22 . रात में एफिल टावर की फोटो खींचना गैरकानूनी है. फोटो खींचने के लिए वहाँ के संचालकों से इजाजत लेनी पड़ती है. दरअसल एफिल टावर पर लगी लाइट के डिजाइन पर उसके कलाकारों का कॉपीराइट है. यूरोप के कॉपीराइट कानून के मुताबिक. कॉपीराइट वाली चीजों की तस्वीरें खींचना कॉपीराइट नियम का उल्लंघन है। 

23 . इसके निर्माण में 300 कारीगरों ने काम किया था. साथ ही इसे बनाने में खास तरह के 18038 लोहे के टुकड़े और 2.5 मिलियन कील का इस्तेमाल हुआ था. वहीं इसे तैयार करने में दो साल दो महीने और पांच दिन का समय लगा था। 

24 . सन् 1902 में बिजली के झटके ने एफिल टावर के ऊपरी हिस्से को काफी नुकसान पहुंचाया था. जिसके बाद उस हिस्से का दोबारा निर्माण किया गया।

25 . बदलते तापमान की वजह से इसकी ऊंचाई में 5 से 6 इंच का अंतर आ जाता है. इसके अलावा तेज हवा में यह टावर 2 से 3 इंच नीचे झुक जाता हैं।

26 . सन् 1923 में एक व्यक्ति ने किसी से लगाई शर्त के मुताबिक साइकिल से टावर की सीढ़ियों पर चढ़ाई की थी. वह यह शर्त जीत गया. लेकिन उसे इस गैरकानूनी काम के लिए स्थानीय पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था।

27 . एफिल टावर एक ऐसा पसंदीदा और आकर्षक ढांचा है जिसकी दुनिया भर में करीब 30 से भी ज्यादा नक्ल बनाई जा चुकी है।

28 . अगर आज के समय में एफिल टाॅवर का निर्माण किया जाये तो इसमें लगभग 31 मिलियन ङाॅलर का खर्च आऐगा।

29 . एक महिला ने सन् 2007 में एफिल टाॅवर से विवाह कर लिया था. जिसे बाद में एरिक ला टूर एफिल के नाम से जाना गया।

30 . सन् 1925 से 1934 के बीच एक फ्रांसीसी कार व्यापारी साइट्रोन ने टावर पर बल्बो से अपनी कम्पनी का नाम लिख कर सबसे बडे विज्ञापन बोर्ड का गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था।

दोस्तो कैसी लगी जानकारी काॅमेंट करके अपनी राय जरूर साझा करें. जल्द ही मिलेंगे किसी और रोचक तथ्य के साथ धन्यवाद दोस्तो।

गुरुवार, 24 मई 2018

मिस्त्र के पिरामिङ के बारे में कुछ रोचक तथ्य। Amazing Facts About Egypt Pyramid

नमस्कार दोस्तो में योगेन्द्र एक बार फिर से आपका स्वागत करता हुं अपने ब्लाॅग गजब दुनिया पर। दोस्तो पिछले पोस्ट में मैने आपको ङायनासोर के बारे में कुछ रोचक तथ्य बताऐ थे। आशा करता हुं आपको जानकारी अच्छी लगी होगी। तो चलिऐ दोस्तो आज जानते हैं मिस्त्र के पिरामिङस के बारे में कुछ रोचक तथ्य।


मिस्र अरब गणराज्य का एक देश है. जिसका अधिकांश एरिया उतरी अफ्रीका में स्थित हैं. मिस्र एक अंतरमहाद्वीपीय देश है. इस्लामी दुनिया की यह एक प्रमुख शक्ति है. इसका क्षेत्रफल 1010000 वर्ग किलोमीटर है और इसके उत्तर में भूमध्य सागर. पूर्वोत्तर में गाजापट्टी और इस्त्राइल पूर्व में लाल सागर दक्षिण में सूङान और पश्चिम में लीबिया स्थित है।

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1 . दुनिया के सबसे सात प्राचीन चमत्कारों में से एक मिस्त्र के महान पिरामिड भी वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना है। तथ्यो के आधार पर इनका निर्माण करीब 2560 ईसा पूर्व मिस्त्र के शासक खुफु के चोथे वंश द्वारा अपनी कब्र के तौर पर करवाया गया था।

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2 . इन पिरामिङस को 2560 ईसा पूर्व बनाया गया था इसके अलावा इसका निर्माण कैसे किया गया था ये वैज्ञानिकों के बीच आज भी एक बहस का मुद्दा है।

3 . इतिहासकारों का मानना है कि पहले के समय में भी लोगों में श्रम और तकनीकी कौशल पाया जाता था तभी हमारे बीच में आज इस तरह के ये महान पिरामिड खड़े हैं।

4 . ये पिरामिङ राजाओ को दफनाने के लिऐ बनाऐ गऐ थे क्या आप जानते हैं गिजा के महान पिरामिङ का वजन तकरीबन 5.5 अरब किलो हैं।

5 . पिरामिङ का फर्श चकौर और उपर का हिस्सा त्रिकोण जैसा या नोकदार होता हैं इनकी ऊँचाई लगभग 400 से 500 फीट तक होती हैं।

6 . मिस्त्र के सभी पिरामिङ नील नदी के किनारे पश्चिमी तट पर बनाऐ गऐ हैं।

7 . पिरामिङ बनाने में लाखो की तदाद में मजदूर लगे थे और हाँ ये किसी के गुलाम नही थे ये अपनी दैनिक मजदूरी भी लेते थे।

8 . आप पिरामिङ के उपर भी चढ सकते हैं परन्तु सिर्फ एक बार क्योंकि यदि कोई टुरिस्ट ऐसा करता हैं तो जीवन भर उसके मिस्त्र आने पर रोक लगा दी जाती हैं इसके उपर चढने के लिऐ आपको 203 सीढियां चढनी होगी।

9 . सबसे अधिक पिरामिङस मिस्त्र में नही ब्लकि सूङान में हैं।

10 . ग्रेट पिरामिङ गिजा की साईङ थोङी सी concave lens की तरह हैं ये एक मात्र ऐसा पिरामिङ हैं जिसमे ये सुविधा हैं ।

11 . गिजा के ग्रेट पिरामिङ और अन्य दो पिरामिङो में कुछ नकली और एक असली दरवाजा था ये दरवाजा इतने गजब तरीके से बनाया गया था कि 18000 किलो वजन होने के बाद भी यह एक धक्के में खुल जाता।

12 . इसे संयोग ही मानियेगा कि लाईट की स्पीङ और गिजा के ग्रेट पिरामिङ का निर्देशांक दोनो समान हैं।

13 . तीनो पिरामिङ Khufu, Khafre और Menkaure उन्ही तारो की दिशा में हैं जो ओरियन बेल्ट के नक्षत्र बनते हैं।

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14 . पिरामिङ के फायदे भी हैं इसे पिरामिङ का जादुई प्रभाव ही कहेंगे कि बाहर बहुत ज्यादा गर्मी होने के बाद भी पिरामिङ के अंदर का तापमान 20° सेल्सियस ही रहता हैं।

15 . आज से 4000 साल पहले पिरामिङ शीशे की तरह चमकते थे क्योंकि इन्हे पाॅलिश किऐ गऐ सफेद चूना पत्थर से कवर किया गया था ये सुर्य की रोशनी को रिफ्लेक्ट करते थे और इजरायल की पहाङियों से भी दिखाई देते थे और अनुमान लगाया जाता हैं चाँद से भी दिखते हो।

16 . एक अनुमान के अनुसार गिजा के पिरामिङ को बनाने में 23 लाख पत्थर के टुकङो का इस्तेमाल हुआ जिनका वजन 2 से 50 टन और कुछ का वजन 45000 किलो तक था।

17 . गिजा के ग्रेट पिरामिङ को बनाने में 10 से 20 साल का समय लगा। Khufu पिरामिङ को ही महान गिजा पिरामिङ के नाम से जाना जाता हैं।

18 . वर्ष 1889 तक गिजा का पिरामिङ दुनिया की सबसे ऊँची इमारत हुआ करता था एफिल टावर बनने के बाद उससे ये खिताब छिन गया।

19 . जब नेपोलियन बोनापार्ट ने गिजा के पिरामिङ को देखा तो वो इसकी कलाकारी देखकर मंत्रमुग्ध हो गया वह यकिन नही कर पा रहा था कि यह पिरामिङ इतना खुबसुरत हैं उसने यह कहा कि वो एक रात इस पिरामिङ में बने राजा के कक्ष में अकेला रहना चाहता हैं यह कक्ष पिरामिङ के भीतर लगभग 140 फीट ऊँचाई पर बना हुआ हैं जब अगले दिन वह उस पिरामिङ से बाहर आया तो उससे पुछा गया उसका रात का अनुभव कैसा रहा उसने वहा क्या देखा तो नेपोलियन कुछ नही बोला और चुपचाप वहा से चला गया नेपोलियन से ये सवाल तब भी पुछा गया था जब वह अपने आखिरी साँसे ले रहा था लेकिन तब नेपोलियन न जो बोला उसे सुनकर सब दंग रह गये नेपोलियन ने कहा कि उस रात के अनुभव के बारे में कुछ बताने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि कोई उस पर विश्वास नहीं करेगा।

20 . वैसे तो मिस्र में 138 पिरामिड है जो 13 एकड़ एरिया में फैले हैं पर इसमें सबसे प्रसिद्ध ग़िज़ा का पिरामिड है इसे ग्रेट ग़िज़ा पिरामिड भी कहा जाता है इसका शुमार दुनिया के 7 अजूबों में होता है

21 . विशेषज्ञों के मुताबिक़ पिरामिड के बाहर पत्थरों को इस तरह तराशा और फिट किया गया है कि इनके जोड़ में एक ब्लेड भी नहीं घुसाई जा सकती।

22 . मिस्रवासी पिरामिड का इस्तेमाल वैधशाला, कैलेंडर, सूर्य की परिक्रमा में पृथ्वी की गति और प्रकाश के वेग को जानने के लिए करते थे।

23 . वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा यह प्रमाणित हो गया है कि पिरामिड के अंदर विलक्षण किस्म की ऊर्जा तरंगे लगातार काम करती रहती है जो सजीव और निर्जीव, दोनों ही तरह की वस्तुओं पर प्रभाव डालती है। वैज्ञानिक इसे “पिरामिड पॉवर” कहते है।

24 . ग्रेट पिरामिङ धरती का वो सबसे सटीक ढांचा हैं जो उतर दिशा को बताता हैं मिस्त्र के लोगो ने केवल ज्योतिष की मदद से हजारो साल पहले ऐसा कर दिखाया था पिरामिङ के आगे का भाग उत्तर दिशा में 3/60° गलत हैं और यह भी इसलिऐ संभव हुआ हैं क्योंकि समय के साथ धरती का नार्थ पाॅल भी बदल जाता हैं इसलिऐ एक समय पर पिरामिङ अपनी जगह एकदम सही था।

25 . गिजा पिरामिड का बेस (आधार) 55,000 m2 (592,000 स्क्वायर फुट) है। इसका एक-एक कोना 20,000 m2 (218, 000 स्क्वायर फुट) क्षेत्र में बना है।

26 . यदि इस पिरामिड के पत्थरों को 30 सेंटीमीटर मोटे टुकड़ों में काट दिया जाए तो इनसे फ्रांस के चारों ओर एक मीटर ऊंची दीवार बनाई जा सकती है।

27 . पिरामिड में नींव के चारों कोने के पत्थरों में बॉल और सॉकेट बनाए गए है ताकि ऊष्मा से होने वाले प्रसार और भूकंप से ये सुरक्षित रहे।

28 . ऐसा माना जाता हैं कि दुनिया में पिरामिङ जैसा पहला ढाँचा 5000 साल पहले mesopotamians द्वारा बनाया गया था।

29 . मिस्त्र के पिरामिङ की उम्र लगभग 4500 साल हो चुकी हैं लेकिन ये अब भी सही सलामत हैं इसके सुरक्षित रहने की वजह इसमे लगा मोटार्र पत्थर हैं जोकि आम पत्थर से काफी मजबुत होता हैं।

30 . गिजा के ग्रेट पिरामिङ को महान Sphinx द्वारा Guard किया गया हैं ये दुनिया में पत्थर की सबसे ऊँची मूर्ती भी हैं और ऐसा माना जाता हैं कि ये Khafre राजा का चेहरा हैं।

31 . गिजा के महान पिरामिङ की आठ साईङ हैं और ये सिर्फ आपको ठीक पिरामिङ के ऊपर से दिखाई देगी।

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बुधवार, 23 मई 2018

ङायनासोर के बारे में कुछ रोचक तथ्य। Amazing Facts About Dinasour




नमस्कार दोस्तो में योगेन्द्र एक बार फिर से आपका स्वागत करता हुं अपने ब्लाॅग गजब दुनिया पर। दोस्तो पिछले पोस्ट में मैने आपको मृत्यु के बारे में कुछ रोचक तथ्य बताऐ थे। आशा करता हुं आपको जानकारी अच्छी लगी होगी। तो चलिऐ दोस्तो आज जानते हैं ङायनासोर के बारे में कुछ रोचक तथ्य।





1 . आज से 23 करोड़ साल पहले डायनासोर का जन्म हुआ और आज से 6.5 करोड़ साल पहले आखिरी डायनासोर की मौत हुई।

2 . डायनासोर की पढ़ाई करने वाले आदमी को Paleontologist कहते है।

3 . डायनासोर धरती पर 16 करोड़ साल तक रहे। इंसानो का जीवन इसका केवल 0.1% है. डाय़नासोर जिस काल में धरती पर जीवित थे उसे Mesozoic era कहा जाता है. ये इस युग के तीनों भागों में जीवित रहे। Triassic, Jurassic, and Cretaceous,

4 . ऐसा माना जाता है कि उस समय डायनासोरों की लगभग 2468 प्रजातियाँ थी। इनमें से कुछ उड़ती भी थी।

5 . ङायनासोर शब्द ग्रीक भाषा के शब्द Terrible Lizard से आया है जिसका अर्थ होता है भयानक छिपकली। डायनासोर शब्द 1842 में एक ब्रिटिश जीवाश्म विज्ञानी रिचर्ड ओवेन ने दिया था।

6 . डाय़नासोर दहाड़ नही सकते थे ये सिर्फ मुंह बंद करके घुरघुरा सकते थे।







7 . गुजरात की नर्मदा नदी के किनारे भी डायनासोर के अवशेष मिले है ये करीब 7 करोड़ साल पुराने है।

8 . इस बात का पक्का सबूत तो नही है लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि डायनासोर लगभग 200 साल तक जीते थे।

9 . DNA केवल 20 लाख साल तक जीवित रह सकता है। इसलिए डायनासोर के जीवाशम का डीएनए टेस्ट नही किया जा सकता।

10 . जो डाय़नासोर पानी के नजदीक थे उसके सबसे अच्छे अवशेष मिले है।

11 . मांस खाने वाले डायनासोर को थेरोपोड कहा जाता है। मतलब राक्षसी पंजो वाले इनके खुर और नाखून तेज होते थे। बल्कि शाकाहरी डायनासोर के पंजे और नाखून तेज नही थे।


https://bonkerzpro.blogspot.in/2018/05/amazing-facts-about-heart-in-hindi_20.html


12 . वैज्ञानिकों का मानना है कि कुछ डायनासोर ठंडे खून के थे तो कुछ गर्म खून के शाकाहारी डायनासोर ठंडे खून के थे कुछ बड़े आकार वाले शाकाहारी रोज एक टन खाना खाते थे मतलब, एक बड़ी बस के गठ्ठर (bundle) के बराबर बल्कि मांसाहारी डायनासोर गर्म खून के थे और ये अपने साइज के शाकाहारियों से 10 गुना ज्यादा भोजन खा जाते थे।

13 . डायनासोरों की हड्डियाँ खोखली होती थी खासकर मांसाहारी डायनासोरों की ताकि इनका वजन हल्का बना रहे और ये दो पैरो पर चलते थे ताकि ये तेजी से भाग सके और दोनों हाथो से शिकार कर सके शाकाहारी डाय़नासोर अपने भारी शरीर को चलाने के लिए चार पैरों पर चलते थे ये सिर्फ कुछ समय के लिए ही दो पैरों पर संतुलन बना पाते थे।

14 . सबसे बड़े डायनासोर के अंडे बाॅस्केट बाॅल जितने बड़े होते थे जितना बड़ा अंडा उतना ही मोटा उसका कवच ताकि बच्चे बाहर ना आ सके अब तक मिले सबसे छोटे डायनासोरी अंडे की लंबाई 3 cm और वजन 75 gram है ये अंडा किस प्रजाति का था किसी को नही पता सबसे बड़ा डायनासोरी अंडा 19 इंच की लंबाई का मिला है ऐसा माना जाता है कि यह एशिया के मांसाहारी डायनासोर का है डायनासोर की सभी प्रजातिया अंडे देती थी अभी तक 40 प्रजातियों के अंडे मिल चुके है।

15 . 45 फीट लंबे और 6350 किलो वजनी T. Rex {Tyrannosaurus rex} सबसे बड़े मांसाहारी डायनासोर थे इनके पिछले पैर बहुत बड़े-बड़े होते थे लेकिन अगले हाथ बिल्कुल छोटे-छोटे मतलब आज के आदमियों जितने इनके बड़े-बड़े दाँत होते थे जिनकी लंबाई जड़ समेत 10 इंच थी मतलब, iPad जितनी इनके 4 फीट लंबे जबड़े में 50 से 60 दाँत होते थे ये काट सकते थे लेकिन शिकार को चबाते नही थे बल्कि सीधा निगल जाते थे।

16 . सभी डाय़नासोर में Self-Defense सिस्टम मौजूद था मतलब अपनी सुरक्षा के लायक हथियार जन्म से उनके पास होते थे जैसे मांसाहारी के दांत और नाखून लंबे होते थे शाकाहारी के सींग और चौड़े पंजे होते थे लेकिन आज तक कोई ये नही जान पाया की डायनासोर की पीठ पर प्लेट क्यों होती थी।

17 . अधिकत्तर डायनासोर सिर्फ एक हड्डी या एक दाँत से खोजे गए है।

18 . 2015 में एक 4 साल के बच्चे ने 10 करोड़ साल पुराने डायनासोर का जीवाश्म खोजा।

19 . यदि धरती के इतिहास को 24 घंटो का बना दिया जाए तो सुबह 4:00 बजे जीवन शुरू हुआ रात 10:24 पर पेड़-पौधे उगने शुरू हुए 11:41 पर डायनासोर विलुप्त हो गए और रात 11:58:43 पर इंसान का जन्म हुआ।

20 . डायनासोर पत्थर के बड़े-बड़े टुकड़े निगल जाते थे ये इनके पेट में रहकर भोजन पचाने में सहायता करते थे।

21 . डाय़नासोर अंटार्कटिका सहित हर महाद्वीप पर पाए गए है लेकिन उस समय महाद्वीप एक-दूसरे के नजदीक हुआ करते थे।

22 . कुछ डायनासोर की पूंछ 45 मीटर लंबी थी ये लंबी पूँछ भागते समय बैलेंस बनाने में मदद करती थी।

23 . मध्य चीन में ग्रामीण कई साल तक डायनासोरों की हड्डियों को दवा के रूप में प्रयोग करते रहे वे इन्हें ड्रैगन की हड्डियाँ मानते थे कुछ लोगो ने इनको इकट्ठा करके व्यापार बना लिया था. एक मि. झांग नाम के आदमी ने 8,000 किलो हड्डियाँ इकट्ठी कर ली थी।







24 . सबसे तेज डायनासोर थे {Ornithomimus} ये 70km per hour की रफ्तार से दौड़ सकते थे ये हूबहू आज के शुतुरमुर्ग की तरह दिखते थे ये खाते क्या थे आज भी रहस्य है।

25 . अब तक खोजे गए सबसे बड़े डाय़नासोर के कंकाल की लंबाई 89 फीट है इसका नाम रखा गया {Diplodocus} ये अमेरिका के व्योमिंग शहर में मिला था सबसे छोटे डायनासोर के कंकाल की लंबाई केवल 4 इंच है और इसका वजन एक चुहिया से भी कम रहा होगा इसे हम शाॅपिंग बैग में भी डाल सकते थे।

26 . बोलविया में एक चूना पत्थर की चट्टान पर डायनासोरों के पाँवो के 5,000 निशान पाये गए है ये निशान करीब 6 करोड़ 80 लाख साल पुराने है {Bolivia Dinosaur Footprints}.

27 . ये मजेदार तथ्य है की फिल्म का नाम {Jurassic Park} होने के बावजूद इसमें ज्यादात्तर डाय़नासोर {Cretaceous} काल के थे।

28 . जुरासिक पार्क फिल्म में डायनासोरो की जो आवाज निकाली गई है वह दरअसल सेक्स करते हुए कछुओं की आवाज है।

29 . डायनासोर एकदम से खत्म इसलिए हुए क्योंकि आज से 6.5 करोड़ साल पहले मैक्सिको के युकैटन प्रायद्वीप से एक 6 मील व्यास वाला उल्का पिंड टकराया था इस टकराव से 112 मील चौड़ा गढ्ढा बन गया इसकी वजह से बहुत तेज शाॅकवेव पैदा हुई जो पूरी धरती पर फैल गई इससे जो जानवर कुत्ते से बड़े आकार के थे वो सब खत्म हो गए हालांकि, शार्क जेलिफ़िश मछली बिच्छू, पक्षी कीड़े सांप कछुआ, छिपकली और मगरमच्छ जैसे जानवरों की जान बच गई।

30 . जब आप ऑफलाइन होते है तो गूगल क्रोम एक डायनासोर को क्यों दिखाता है।
Ans- इसका मतलब है इंटरनेट के बिना अब आप डायनासोर के युग में रह रहे है यह एक गेम है जिसका नाम है {Easter egg Chrome T-Rex Game} इस गेम को 6 डेवलपर्स की छोटी सी टीम ने बनाया है {Edward Jung} और Sebastien Gabriel दो मुख्य डेवलपर्स है और गूगल के कैंपस में एक डायनासोर का कंकाल भी है जिसे ‘Stan’ नाम दिया गया है।

मंगलवार, 22 मई 2018

मौत (मृत्यु) से जुड़े 35 रोचक तथ्य। Amazing Facts About Death.







नमस्कार दोस्तो में योगेन्द्र एक बार फिर से आपका स्वागत करता हुं अपने ब्लाॅग गजब दुनिया पर। दोस्तो पिछले पोस्ट में मैने आपको प्यार की निशानियों के बारे में कुछ रोचक तथ्य बताऐ थे। आशा करता हुं आपको जानकारी अच्छी लगी होगी। तो चलिऐ दोस्तो आज जानते हैं मृत्यु के बारे में कुछ रोचक तथ्य।

जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु अवश्य होगी यह एक अटल सत्य है हमारे पास चाहे कितनी भी टेक्नोलॉजी आ जाये और इंसान चाहे कितना भी विकसित क्यों न हो जाये। लेकिन यह एक विधि का विधान है जो परम सत्य है और इस नियम को परमात्मा ने बनाया है तो इस नियम को कोई तोड़ नहीं सकता। इन्सान चाहे कितना भी शक्तिशाली और बुद्धिजीवी क्यों न बन जाये, लेकिन कभी भी परमात्मा से आगे नहीं जा सकता। तो आज हम जानते हैं मौत से जुड़े 35 रोचक तथ्य । Interesting facts about death hindi तो चलिए अब शुरू करते हैं।

1 . अगर आपने भगवत गीता पढ़ी हैं या TV सीरियल देखा हैं तो आपको पता होगा की इंसान के शरीर को चलाने वाली आत्मा होती है जो कभी न मरती है और न जन्मती है सिर्फ शरीर मरता है और आत्मा शरीर बदलती है।

2 . कभी भी मृत्यु के समय हमारे शरीर के सारे ओर्गंस एक ही बार में काम करना बंद नहीं करते बल्कि एक एक करके काम करना बंद करते हैं और सबसे लास्ट में हमारे सुनने की क्षमता ख़त्म होती है यानी सभी बॉडी ओर्गंस के रुकने के बाद भी कुछ समय तक इंसान आस पास की बातो को सुन सकता है भले ही दिमाग के काम ना करने की वजह से इंसान कुछ समझ नहीं पाता।

3 . यदि किसी आदमी के सिर को काट दिया जाये तो वह तकरीबन २० सेकंड तक जिन्दा रह सकता है लेकिन किसी इंसान के सिर में गोली मार दी जाए तो वह तुरंत ही मर जायेगा।

4 . दुनिया में प्रतिदिन करीब 1,59,636 लोगों की मृत्यु होती है।







5 . जो एंजाइम पेट में हमारे खाने को पचाते हैं, मरने के 3 दिन बाद वह हमारी आंतो को ही पचाने लग जाते हैं।

6 . लेफ्ट हैंड का इस्तेमाल करने वाले वाले इंसान राइट हैंड यूज करने वालों के मुकाबले 3 साल कम जीते हैं।

7 . किसी भी इंसान की मौत का कारण उसका बुढ़ापा नहीं बनता बल्कि बुढ़ापे में शरीर के एंटीबायोटिक एलेमेंट्स और रोग प्रतिरोधी क्षमता कम हो जाती है जिस से प्राणी को बहुत सारी बिमारी जकड लेती हैं और फिर यही बीमारी उनकी मौत का कारण बन जाती है।

8 . मरे हुए इंसान को जलाने की परंपरा करीब साड़े तीन लाख साल पहले से चली आ रही है।

9 . आपको यह जानकर भी हैरानी होगी की दुनिया में हर साल करीब 7 हजार लोगों की मौत प्रिस्क्रिप्शन पर लिखी दवा का नाम समझ नहीं आने की वजह से होती हैं। क्योंकि डॉ जिस राइटिंग में लिखते हैं वो तो वो ही जाने और मेडिकल स्टोर वाले फिर जो समझ में आये वही  दवाइयां पकड़ा देते हैं।

10 . आपने ये बात नोटिस की होगी की बहुत सारे लोगो की मौत सुबह ढाई बजे से साडे चार  बजे  के बीच होती है , क्या आप जानते हैं क्यों ? क्योंकि वह रात का वो वक़्त होता है जब हमारा शरीर सबसे कमज़ोर हालत में होता है।

11 . ये तो कोई फिक्स नहीं बता सकता लेकिन research के आंकड़ो के अनुसार अब तक करीब 100 अरब से ज्यादा लोगो की मौत हो चुकी है।

12 . न्युयोर्क सिटी में उतनी हत्याएं नहीं होती हैं जितनी वहा आत्महत्याए होती है।

13 . समुद्र में शार्क मछलियों द्वारा हर साल सिर्फ 12 मनुष्य ही मारे जाते हैं जबकि मनुष्य हर घंटे समुद्र में 11,417 शार्क मछलियों को अपना शिकार बना लेता है।

14 . और उस से भी ज्यादा चौकाने वाली बात यह है कि उतनी मौते शार्क अटैक से भी नहीं होती जितनी मौते लोगों के सर पर नारियल गिरने से होती है।

15 . अमेरिका में हर घंटे एक इंसान की मौत ड्रिंक एंड ड्राइव की वजह से होती है।

16 . ब्रिटेन के हाउस ऑफ़ पार्लियामेंट में मरना भी गैर क़ानूनी है।

17 . जब एक बच्चा पैदा होता है तो तब उसकी 300 हड्डिया होती हैं लेकिन मौत के समय तक ये सिफ 206 ही रह जाती है।







18 . यदि दिमाग की कोशिकाओ को ओक्सिजन न मिले तो वे सिर्फ 3 मिनट में ही मर सकती है।

19 . इस बात की ज्यादा संभावना है कि आपकी मौत आतंकवादी हमले की बजाय बाथरूम में पैर फिसलने या बिजली गिरने से हो।

20 . मौत के 6 घंटे बाद हमारा शरीर पूरी तरह से अकड़ जाता है।

21 . कॉकरोच सिर कट जाने के बाद भी नौ दिनों तक जिंदा रह सकते हैं।

22 . भारत में हर घंटे एक महिला की मौत दहेज़ सम्बन्धी कारणो से होती है।

23 . मौत के कुछ घंटो बाद इन्सान की चमड़ी का रंग सफ़ेद और बैंगनी होने लगता है।

24 . प्राचीन मिस्र में लोग अपनी बिल्ली के मरने पर अपनी भौंए छिलवा लेते थे।

25 . दुनिया में बहुत बार ऐसा भी हुआ है कि इंसान को मृत घोषित करने के बाद भी उनको जिन्दा पाया गया है।

26 . हर चालीस सेकेंड में कोई ना कोई आत्महत्या कर ही लेता है।

27 . हर नब्बे सेकेंड में बच्‍चा पैदा करते हुए एक मां की मौत हो जाती है।

28 . मौत के बाद शरीर का जो अंग धरती के सबसे नजदीक होता हैं खून का बहाव भी उसी तरफ हो जाता हैं और फिर खून जम जाता है।

29 . नाखून मृत्यु के बाद नहीं बढ़ते। लेकिन चमड़ी के सूख जाने से नाखूनों को देखकर ऐसा लगता है कि वो मृत्यु के बाद भी बढ़ रहें हैं।

30 . WHO (world health orgnisation) के अनुसार आठ लोगों में से एक आदमी की मौत का कारन वायु प्रदुषण है यानी हवा इतनी गंदी हो चुकी है कि अगर वह फेंफडों में जाती है तो  उसके जरिए शरीर के खून को भी गन्दा कर देती है।

31 . क्या आपको पता है कि मृत पड़े शव का अंदाज़ा कैसे लगाया जाता है कि मृत्यु कितने समय पहले हुई हैं ? इसका अंदाजा मृत शव पर पड़े हुए कीड़ो की प्रजाति से लगाया जाता है।

32 . ब्रिटेन की एक कंपनी जिसका नाम ”रेंट ए मॉउरनर” है यह किसी की मृत्यु पर लोगो को रोने के लिए किराये पर देती है और इन लोगो को मृत के घर जाकर उसके लिए रोना होता है और ये लोग बिलकुल ऐसे रोते हैं मनो मृतक की ही फॅमिली हो।

33 . फांसी देने के बाद आदमी का लिंग सख्त हो जाता हैं और कभी-कभी तो मरने के बाद इसमे से वीर्य स्खलन भी हो जाता हैं।

34 . जिन बिमारियो का इलाज आसानी से किया जा सकता हैं उनकी वजह से भी हर साल 4 लाख से ज्यादा मौते होती हैं।

35. धरती की तुलना में पानी में शव 4 गुणा तेजी से सङता हैं।

दोस्तो पोस्ट आपको कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताये। और अगर आप किसी चीज के बारे में जानना चाहते हैं तो कमेंट करके जरूर बताये कोशिश करेंगे आपकी उत्सुकता को पुरी करने की।

सोमवार, 21 मई 2018

सच्चे प्यार की 15 निशानियां। 15 Signs About True Love.

नमस्कार दोस्तो में योगेन्द्र एक बार फिर से आपका स्वागत करता हुं अपने ब्लाॅग गजब दुनिया पर। दोस्तो पिछले पोस्ट में मैने आपको दिल के बारे में कुछ रोचक तथ्य बताऐ थे। आशा करता हुं आपको जानकारी अच्छी लगी होगी। तो चलिऐ दोस्तो आज जानते हैं सच्चे प्यार की निशानियों के बारे में कुछ रोचक तथ्य।



ये हैं सच्‍चे प्‍यार की 15 निशानियां

हम सभी को कभी न कभी किसी न किसी से प्यार होता ही है. जिस वक्त ये फीलिंग हमारे मन में आती है हम ये भरोसा करने लग जाते हैं कि यही एक बात है जो सच है और बाकी सबकुछ झूठ और फरेब ही है.

प्यार हो जाने पर इंसान अपने सपनों को किसी और की सोच के साथ साझा करने लगता है. पर क्या ये प्यार ही सच्चा प्यार है? कहीं ये सिर्फ आकर्षण तो नहीं?

ये कुछ ऐसी बातें हैं जिन्हें सच्चे प्यार का आधार माना जाता है. अगर आपका प्यार सच्चा है तो कभी न कभी आपको भी ये बातें महसूस हुई होंगी और अगर नहीं हुई हैं तो अब भी वक्त है. सच्चा प्यार कभी भी किसी भी उम्र में मिल सकता है:

1. क्या आपके साथ ऐसा होता है कि अगर आप सड़क पर अकेले चल रहे हैं तो आपके ख्यालों में सिर्फ वही शख्स रहता है. आपके आस-पास बहुत सी चीजें होती हैं लेकिन आपके विचारों में सिर्फ वही शख्स होता है?

2. क्या अपना फेवरिट लव सांग सुनने पर आपको सिर्फ उसी की याद आती है और आपको ये लगता है कि उस गाने का हर शब्द आपको ही ध्यान में रखकर लिखा गया है?

3. क्या आपको उस शख्स की हर बुराई और बचकानी हरकत में भी अच्छाई नजर आती है और उसकी गलतियों प्यार आता है?

4. क्या आप दोनों के बीच खूब बहस होती है लेकिन अंत में आप सारी बातें भूलकर कूल हो जाते हैं?

5. क्या आप उसकी गैर-मौजूदगी में खुद को अधूरा महसूस करते हैं? चाहे कितने ही लोग आपके साथ हों आपकी नजरें उसे ही खोजती हैं?

6. क्या उसके दुखी होने पर आपको भी दुख होता है और आप चाहते हैं कि कैसे भी करके आप उसके दुख को दूर कर दें?

7. क्या आपको अपने प्यार पर पूरा भरोसा है और आपको कोई डर नहीं है कि आप उसे खो देंगे? क्या आप इस बात पर यकीन कर चुके हैं कि वो हमेशा आपके साथ ही रहेगा?







8. क्या आपको उसके लिए किसी चीज की कुर्बानी देने में कुछ भी बुरा नहीं लगता है और आपको लगता है कि ऐसा करने से उसे खुशी होगी इसलिए यही करना सही है?

9. आप खुद तो उससे लड़ाई कर लेते हैं और मन ही मन दुखी भी होते हैं. पर क्या किसी और का उसके खिलाफ बोलना आपको जरा भी नहीं सुहाता है और आप उस दूसरे शख्स को खरी-खोटी सुना देते हैं?

10. क्या अब आप जो कुछ भी करते हैं 'हम' की भावना से करते हैं और 'मैं' की भावना को उसके मिलने के बाद से ही छोड़ दिया है?

11. क्या कई बार पब्लिक प्लेसेज पर आप एक-दूसरे को छेड़ते है और ये भूल जाते हैं कि आपके आस-पास दूसरे भी मौजूद हैं?

12. क्या आपने इस नए साथी मिलने के बाद से आप अपने फेसबुक पेज पर काफी कुछ बदल रहे हैं? मसलन अपनी प्रोफाइल पिक्‍चर बदलना, आए दिन रोमांटिक गानों का अपडेट डालना, पॉजिटिव बातें और लव या उससे जुड़े पोस्‍ट शेयर करना.






13. क्या अब आपको कहीं भी अकेले जाना अच्छा नहीं लगता है और अकेले होने पर आप उसके साथ की ख्वाहिश करते हैं?

14. क्या अब लोगों ने आपसे ये पूछना शुरू कर दिया है कि आप दोनों शादी कब कर रहे है?

15. क्या आप अपने आप से ये कहते हैं कि मुझे अपने साथी के लिए सबसे अच्छा बनना है क्योंकि वो सबसे अच्छा है और बेस्ट डिजर्व करता है?

रविवार, 20 मई 2018

दिल के बारे में कुछ रोचक तथ्य। Amazing Facts About Heart.

नमस्कार दोस्तो में योगेन्द्र एक बार फिर से आपका स्वागत करता हुं अपने ब्लाॅग गजब दुनिया पर। दोस्तो पिछले पोस्ट में मैने आपको दुनिया के कुछ अजब गजब कानूनो के बारे में कुछ रोचक तथ्य बताऐ थे। आशा करता हुं आपको जानकारी अच्छी लगी होगी। तो चलिऐ दोस्तो आज जानते हैं ह्र्दय के बारे में कुछ रोचक तथ्य।

दिल को संभाल के रखो, ये एक अमुल्य अंग हैं। आज हम आपको दिल के बारे में गजब बाते बताने जा रहे हैं।

1. आपका दिल लेफ्ट में नही बल्कि छाती के बिल्कुल बीच में होता हैं

2 . आपका दिल एक बार धङकने से 70ml और 1 मिनट में 4.7 लीटर और पुरे दिन में लगभग 7570 लीटर और पुरे जीवन में लगभग 16 करोङ लीटर खुन पंप करता हैं। ये एक नल के 45 साल तक खुले रहने के बराबर हैं।

3 . आपका दिल शरीर के अलग होने के बाद भी तब तक धङकता रहता हैं जब तक इसे पर्याप्त मात्रा में आॅक्सीजन मिलती रहे. क्योंकि इसका खुद का विधुत आवेग होता हैं

4 . 4 हफ्ते की प्रेग्नेंसी के बाद बच्चे का दिल धङकना शुरू हो जाता हैं।

5 . अभी तक किसी इंसान की सबसे कम 26 धङकन प्रति मिनट और सबसे ज्यादा 480 धङकन प्रति मिनट रिकाॅर्ङ की गई है।

6 . जैसा गाना आप सुन रहे हो उसी के अनुसार आपके दिल की धङकन भी बदल जाती हैं।

7 . ब्लू व्हेल का दिल एक कार जितना बङा और लगभग 590 kg वजन का होता हैं ये सभी जीवो में बङा होता हैं।

8 . 'Etruscan Shrew' ( मलेशिया और कुछ और देशो में चुहे की एक प्रजाति ) का दिल सबसे ज्यादा 1511 धङकन प्रति मिनट और 'Hibernating Groundhog' ( नार्थ अमेरिका की एक प्रकार की गिलहरी ) का दिल सबसे कम 5 धङकन प्रति मिनट रिकाॅर्ङ किया गया है।

9 . जानवरो में सबसे छोटा दिल 'Fairy Fly' ( ततैया के जैसा ) का होता हैं जिसकी लंबाई सिर्फ 0.02 Centimeter होती है।

10 . पाईथन ( सांप ) के दिल का आकार भोजन करते समय बङा हो जाता हैं।






11 . शरीर के आकार के हिसाब से कुते का दिल सबसे बङा होता हैं

12 . आॅक्टोपस के तीन दिल होते हैं।

13 . इतिहास: 1893 में पहली सफल हार्ट सर्जरी हुई। 1950 में पहली सफल कृत्रिम वाल्व ङाली गई , 1967 में पहली बार किसी इंसान का दिल दुसरे इंसान में ङाला गया ( वो इंसान 18 दिन तक जीवित रहा ) और 1982 में पहला स्थायी कृत्रिम दिल लगाया गया।

14 . सेक्स करते समय हार्ट अटैक आना बहुत ही Rare हैं। इनमे से 75% भी तब आया हैं जब कोई पुरूष अपनी पत्नी को धोखा दे रहा हो।

15 . दिल के Electric Current ( ECG ) को मापने वाली मशीन का अविष्कार 1903 में 'Williem Einthoven' ने किया था।

16 . दिल की बिमारियो से सबसे ज्यादा लोग 'तुर्कमेनिस्तान' में मरते हैं, हर साल 1 लाख में से 712 लोग।

17 . Love को Denote करने के लिऐ 'Heart Symbol' का प्रयोग सन् 1250 से हो रहा हैं, लेकिन क्यों हो रहा हैं ये आजतक किसी को नही पता।






18 . यदि हमारा दिल शरीर से बाहर खुन को पंप करे तो यह खुन को 30ft उपर तक उछाल सकता हैं।

19 . कोकीन ङ्रग्स की लत लगे आदमी का दिल शरीर के बाहर निकालने के बाद भी 25 मिनट तक धङक सकता हैं।

20 . आपका बायाँ फेफङा दाये फेफङे से आकार में छोटा होता हैं क्योंकि उसे दिल को जगह देनी होती हैं।

21 . हमारे शरीर की सबसे बङी धमनी 'अरोटा' जो दिल में पाई जाती हैं, की मोटाई गार्ङन में पाई जाने वाली पाईप के बराबर होती हैं।

22 . महिलाओ के दिल की धङकन पुरूषो की धङकन से हर मिनट 8 ज्यादा होती हैं।

23 . दिल का कैंसर बहुत ही कम होता हैं क्योंकि Heart Cells समय के साथ फैलना बंद कर देती हैं।

24 . 3000 साल पुरानी मम्मियो में भी दिल की बिमारियां पाई गई हैं।

25 . दिल के धङकने पर जो 'Thump-Thump' की आवाज आती हैं, वह दिल में पाई जाने वाली 4 वाल्व के खुलने और बंद होने की वजह से बनती हैं।

26 . आपका दिल शरीर के सभी 75 Trillions Cells को खुन भेजता हैं, सिर्फ आँख में पाई जाने वाली काॅर्निया सेल को छोङकर।

27 . पुरूष और महिला दोनो में हार्ट अटैक के लक्ष्ण अलग-अलग होते हैं, एक टुटा हुआ दिल भी हार्ट अटैक की तरह फील करता हैं।

28 . Heart Attack आने के सबसे ज्यादा चांस सोमवार की सुबह को और साल में सबसे अधिक क्रिशमश ङे के दिन होते हैं।

29 . आपका दिल एक मिनट में 72 बार और पुरे दिन में लगभग 1 लाख बार और पुरे जीवन में लगभग 2.5 अरब बार धङकता हैं।








30 . आपके दिल का वजन 250 से 350 ग्राम होता हैं, यह 12cm लंबा 8cm चौङा और 6cm मोटा यानि आपकी दोनो हाथो की मुट्ठी के आकार का होता हैं।

31 . नऐ पैदा हुऐ बच्चे के दिल की धङकन सबसे तेज होती हैं, (70-160 Beat Per Minute) और बुढापे में दिल की धङकन सबसे स्लो होती हैं, (30-40 Beat Per Minute).

32 . हर दिन आपका दिल इतनी एनर्जी पैदा करता हैं, कि एक ट्रक को 32km तक चलाया जा सके और पुरे जीवन में चाँद पर आने जाने के बराबर

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दुनिया के 100 अजब गजब कानून। Amazing Laws From Around The World In Hindi.

नमस्कार दोस्तो में योगेन्द्र एक बार फिर से आपका स्वागत करता हुं अपने ब्लाॅग गजब दुनिया पर। दोस्तो पिछले पोस्ट में मैने आपको कैंसर उपचार मुश्किल हैं पर नामुमकिन नही के बारे में उपचार से जुङी पुरी जानकारी आपके साथ साझा की थी आशा करता हुं आपको जानकारी अच्छी लगी होगी। तो चलिऐ दोस्तो आज जानते हैं दुनिया के 100 अजब गजब कानूनो के बारे में कुछ रोचक तथ्य।


अगर हम दुनिया के अलग अलग कानूनों का अध्यन्न करे तो हमे हर देश में कुछ ऐसे कानून नज़र आयेंगे जो कि सुनने में बहुत ही अजीबो गरीब होते है, जिनको सुनकर यह समझ नहीं आता कि इस क़ानून को बनाने के पीछे लॉजिक क्या है जैसे कि सन फ्रांसिस्को में आप अपनी कार को अंडरवेयर से साफ़ नहीं कर सकते है, यह एक अपराध है या फिर नेवाडा के युरेका में मूंछों वाले मर्दों का महिलाओं को kiss करना गैरकानूनी है। इनमे से कुछ कानून तो  सैंकड़ों साल पुराने हैं। इन्हें न तो बदलने की कोशिश की गई, न ही खत्म किया गया। ये अब भी किसी परंपरा की तरह चल रहे हैं। वैसे तो ऐसे कानूनों कि संख्या बहुत ज्यादा है पर हमने आप के लिए यहाँ 100 ऐसे ही विचित्र कानूनो का संकलन किया है।


1. ओकलाहोमा में अगर आपने किसी कुत्ते को चिढ़ाने की कोशिश की, तो आपको हिरासत में ले लिया जाएगा।

2. ऊटाह में सड़क किनारे पेपर बैग में वायलिन कैरी करना गैरकानूनी है।

3. सन फ्रांसिस्को में सड़क किनारे घोड़े के खाद का 6 फीट ऊंचा ढेर लगाना गैरकानूनी है।

4. टेक्सास के देवोन में अर्धनग्न होकर फर्नीचर बनाना कानून के खिलाफ है।







5. मोन्टाना के बोजमैन में एक कानून के तहत सूर्यास्त के बाद घर के आंगन में सभी तरह की यौन गतिविधियों पर प्रतिबंध है।

6. कैलिफोर्निया में ड्राइवर रहित वाहन को 60 मील/ घंटे के अधिक रफ्तार से चलाना गैरकानूनी है।

7. फ्लेरिडा में सार्वजनिक रूप से पुरुषों के स्ट्रेपलेस (बिना फीते) गाउन पहनने पर प्रतिबंध है। ऐसा करने पर उन्हें जुर्माना हो सकता है।

8. दक्षिण कैरोलीना में रविवार के दिन अदालत भवन के बाहर महिलाओं को मारना गैरकानूनी नहीं है।

9. टेनेसी में अगर आप कार ड्राइव करते वक्त सो गए, तो फिर आप कानून तोड़ने के भागीदारी होंगे।

10. न्यूयॉर्क में छत से कूदने पर मौत की सजा का प्रावधान है।

11. पेनसिल्वेनिया के दानविले में आग लगने के एक घंटे पहले फायर नोजल चेक होना जरूरी है।

12. विस्कॉन्सिन के कॉनर्सविले में यौन क्रिया के दौरान जब महिला ऑरगेज्म के करीब हो, तब पुरुष द्वारा बंदूक फायर करना गैरकानूनी है।

13. पेन्सिलवेनिया में डॉलर को धागे से बांध कर दूसरों को झांसा देना कानून के खिलाफ है।

14. न्यूयॉर्क के रेस्टोरेंट में सैंडविच को ‘कॉर्न्ड बीफ सैंडविच’ बोलना गैरकानूनी है, अगर वह सफेद व मेयोनाइज ब्रेड से बना हो।

15. सन फ्रांसिस्को में कार वॉशिंग के दौरान कार को अंडरवेयर से साफ करना गैरकानूनी है।

16. फ्रांस में ‘ईटी’ (एक्सट्रा टेरस्ट्रियल) डॉल बेचना गैरकानूनी है। यहां उन डॉल्स को बेचने की इजाजत नहीं, जिनके ह्यूमन फेस नहीं होते हैं।

17. लुसियाना में कुदरती दांतों से किसी को काटने पर सामान्य बेईज्जती कहा गया है। लेकिन अगर नकली दांत से किसी को काटा गया हो तो घोर बेईज्जती कहते हैं।






18. वाशिंगटन में किसी भी परिस्थिति में वर्जिन के साथ सेक्स करना गैरकानूनी है। इसमें सुहागरात भी शामिल है।

19. स्विटजरलैंड में रात 10 बजे के बाद पुरुषों द्वारा खड़े होकर रिलैक्स करने को गैरकानूनी कहा गया है।

20. फ्लोरिडा में गुरुवार के दिन 6 बजे के बाद सार्वजनिक जगहों पर पादना गैरकानूनी है।

21. मैसाच्यूट्स रात में बगैर नहाए बिस्तर पर जाना गैरकानूनी है। हालांकि, रविवार के दिन नहाना गैरकानूनी है।

22. सऊदी अरब के जिद्दा में 1979 में होटल के स्वीमिंग पूल में नहाने पर पाबंदी लगा दी गई थी।

23. सैमोओ में खुद के जन्मदिन का तारीख भूलना जुर्म है।

24. अलाबामा में जेल प्रहरियों का अपनी बीबियों से बातचीत करना गैरकानूनी है।

25. इंगलैंड के लंदन में सिटी कैब में पागल कुत्तों या लाशों को ले जाना गैरकानूनी है।

26. इंगलैंड में संसद के सदन के भीतर मरना गैरकानूनी है।

27. इंगलैंड में क्वीन स्टैंप को उल्टा चिपकाना राजद्रोह की श्रेणी में आता है।

28. लॉस एंजिल्स में अगर वेटर कस्टमर से कहता है कि ‘मैं एक एक्टर हूं’, तो ये गैरकानूनी है।

29. इंडियाना में बार्बी डॉल को मेन्स के कपड़े पहनाना गैरकानूनी कृत्य है।

30. एरिज के सिडोना में हस्तरेखा देख कर झूठ बोलना गैरकानूनी है।

31. टेक्सास में खाली बंदूक दिखाकर किसी को धमकी देना गैरकानूनी है।

32. ऑस्ट्रेलिया में उस जानवर का नाम लेना गैरकानूनी कृत्य है, जब आप उसे खाना चाहते हैं।

33.  फ्रांस के कान्स में जेरी लुईस का मास्क पहनना गैरकानूनी है।

34. न्यू जर्सी में अगर ट्रैफिक पुलिस के इस सवाल ‘क्या तुम्हें पता है, मैंने तुम्हें क्यों रोका?’ पर आपने ये ‘अगर तुम्हें नहीं पता, तो मैं तुम्हें नहीं बताऊंगा’ जवाब दिया, तो आप पर स्वत: 300 डॉलर यानी 18 हजार रुपए का जुर्माना हो जाएगा।

35. यॉर्क के प्राचीन शहर सीमा के अंदर किसी स्कॉट नगारिक को मारना गैरकानूनी है, अगर वह अपने साथ तीर-धनुष लेकर चल रहा हो।






36. लंदन में टैक्सी रोकना उस वक्त गैरकानूनी है, जब आप प्लेग बीमारी से ग्रसित हैं।

37. केंटुकी में मैदान को लाल रंग रंगना गैरकानूनी है।

38. पुर्तगाल में समुद्र में पिशाब करना गैरकानूनी कृत्य है।

39. दक्षिण कैरोलीना में कुंआरी लड़कियों के एडिबल पैंटीज खरीदने पर पाबंदी है।

40. इटली में मोटे लोगों के पॉलिस्टर कपड़ों से बना परिधान पहनने पर पाबंदी है।

41. मोन्टाना में फोनबुक को आधे हिस्से में फाड़ना गैरकानूनी है।

42. कैलिफोर्निया में अगर कोई स्मूदी (रसीले फलों का जूस), जिसमें गठीला पदार्थ हो बेचते पाया गया, तो वह व्यक्ति कानूनी तोड़ने की श्रेणी में आएगा।

43. मिशिगन में फायर हाईड्रेंट के साथ घड़ियाल को चेन से बांधना गैरकानूनी है।

44. अर्कन्सास में व्हाइट वेडिंग गाउन में दूसरी बार महिलाओं के शादी करने पर मनाही है।

45. ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया में रविवार को दिन के वक्त सुर्ख पिंक पैंट्स पहनने पर पाबंदी है।

46. कनेक्टिकट में नाइट वॉचमैन (चौकीदार) काम के दौरान डिकैफिनेटेड कॉफी नहीं पी सकते हैं।

47. केंटुकी में जेब में आइसक्रीम कोन्स ले जाना गैरकानूनी है।

48. मिनेसोटा में अगर आप बिल्ली के पीछे अपने पालतू कुत्ते को दौड़ाने के लिए उकसाते हैं, तो ये गैरकानूनी कृत्य की श्रेणी में आएगा।

49. लोआ में चुंबने लेने के पांच मिनट बाद आप कानून तोड़ने की श्रेणी में आते हैं।

50. अमेरिका के 24 राज्यों में एक कानून के तहत औरत अपने पति को तलाक दे सकती है, अगर वो नामर्द है।

51. इलियोनॉस में पालतू के मुंह में जली हुई सिगार देना गैरकानूनी है।

52. फ्लोरिडा के मियामी में जानवरों की नकल उतारना गैरकानूनी है।

53. ओहियो के ऑक्सफोर्ड में किसी मर्द की तस्वीर के सामने औरतों का कपड़े पहनना गैरकानूनी है।

54. बाल्टीमोर में शेर को सिनेमाहॉल ले जाना गैरकानूनी कृत्य है।

55. वाशिंगटन में अभिभावकों का खुद को धनी जताना गैरकानूनी है।

56. टेक्सास में अगर आप अपराध कबूल करना चाहते हैं, तो आपको कानूनी तौर पर 24 घंटे पहले पुलिस को सूचित करना होगा।

57. दक्षिण डकोटा में पनीर की फैक्ट्री में सोना गैरकानूनी कृत्य है।

58. मैरीलैंड में रोडियो पर रैंडी न्यूमैन्स के गीत ‘शॉर्ट पीपल’ पर प्रतिबंध जारी है।

59. मिसौरी में महिला ने अगर नाइट गाउन पहनी हो, तो दमकल कर्मी उसे बचा नहीं सकता, क्योंकि वहां ऐसा करना गैरकानूनी कृत्य है।

60. ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया शहर में आप अपने घर का ब्लब खुद नहीं बदल सकते है इसकेलिए आपको किसी लाइसेंस शुदा इलेक्ट्रिसियन को बुलाना होगा।

61. फ्रांस में सुअर का नेपोलियन नामकरण करना गैरकानूनी है।

62. इंडोनेशिया में हस्तमैथुन करते पाए जाने पर सिर कलम करने का सजा का प्रावधान है।

63. सन सल्वाडोर में नशे में धुत होकर गाड़ी चलाने वाले शख्स को आग से झुलसाकर मारने का प्रावधान है।

64. बेहराइन में एक पुरुष ही कानूनी तौर पर किसी महिला के गुप्तांग की जांच (दर्पण देखकर) कर सकता है।

65. रोड आइलैंड पर रविवार के दिन एक ही ग्राहक को टूथ पेस्ट व टूथ ब्रश बेचना गैरकानूनी है।

66. मिनियापोलिस के अलेक्जेंड्रिया में एक पुरुष का सार्डिन मछली की मौजूदगी में महिला के साथ यौन संबंध स्थापित करना गैरकानूनी है।

67. सिंगापुर में च्यूइंग गम चबाना गैरकानूनी है।

68. एरिजोना में ऊंट का शिकार करना गैरकानूनी है।

69. नॉर्थ कैरोलीना मरे लोगों के सामने कसम लेना गैरकानूनी कृत्य है।

70. फ्लोरिडा में पॉर्क्यूपाइन (कांटेदार जानवर) के साथ यौन क्रिया करना गैरकानूनी है।

71. बर्मा में इंटरनेट का इस्तेमाल करना कानून के खिलाफ है। अगर कोई ऐसा करते पकड़ा जाता है, तो उसे जेल हो सकती है।

72. लोआ में घोड़ों का फायर हाइड्रेंट चबाना या खाना गैरकानूनी कृत्य है। इसलिए घोड़े मालिक जरा सावधान।

73. वर्माउंट में महिला को नकली दांत लगाने से पहले पति से लिखित में सहमति लेना जरूरी है।

74. लॉस एंजिल्स में एक ही टब में दो बच्चों को स्नान कराना गैरकानूनी है।

75. ओकलाहोमा में अगर आपके बाथटब में गधा सोता पाया गया, तो ये कानून के खिलाफ है।

76. इजरायल में रविवार के दिन नाक झाड़ने पर आप पर मामला दर्ज हो सकता है।

77. स्वीडन में वेश्याओं की सेवाएं लेना गैरकानूनी है। जबकि यहां वेश्यावृत्ति वैध है।

78. थाईलैंड में बगैर अंडरवियर पहने घर से बाहर निकलना गैरकानूनी कृत्य है।

79. कैलिफोर्निया में छोटे तलाब में बच्चे को खेलता छोड़ना गैरकानूनी है।

80. ओकलाहोमा में ऑटोमोबाइल से छेड़छाड़ करना अवैध है।

81. जर्मनी के राजमार्ग पर गाड़ी रोकना गैरकानूनी है।

82. तुर्की में 80 साल के वयोवृद्ध के पायलट बनने पर प्रतिबंध है।

83. शिकागो में ऐसी जगह पर खाना गैरकानूनी है, जहां पर आग हो।

84. पेनसिल्वेनिया में बाहर खुले में फ्रिज के ऊपर नींद लेना गैरकानूनी कृत्य है।

85. नेवाडा के युरेका में मूंछों वाले मर्दों का महिलाओं को kiss करना गैरकानूनी है।

86. ओहियो में मछली को शराब पिलाना गैरकानूनी कृत्य है।

87. फ्लोरिडा के मियामी में पुलिस थाने में स्केटिंग करना कानून के खिलाफ है।

88. फ्लोरिडा में रविवार के दिन अविवाहित महिलाओं का पैराशूट पर उड़ना गैरकानूनी है। इसके लिए उन्हें जेल भी हो सकती है।

89. टेक्सास में होटल की दूसरी मंजिल से किसी भैंस पर गोली चलाना गैरकानूनी है।

90. कोलराडो के शहरी क्षेत्र में किसी पक्षी का शिकार करना गैरकानूनी है।

91. अलाबामा में आंखों पर पट्टी बांधकर गाड़ी चलाना अवैध है।


2. लोवा में पुरुषों का बीयर की तीन सिप लेना गैरकानूनी है, अगर वे अपनी पत्नी के साथ बिस्तर पर हों।

93. कैलिफोर्निया के शिको में अगर कोई शख्स शहरी सीमा के भीतर न्यूक्लियर डिवाइस विस्फोट करता है, तो उसे 500 डॉलर यानी 30 हजार रुपए का जुर्माना भरना होगा।

94. ऊटाह में चलती एम्बुलेंस में महिलाओं का पुरुषों को साथ सेक्स करना गैरकानूनी है।

95. कोलंबिया में बिगफुट (बड़े पैर वाला मानव, जो शायद ही मिले) को मारना गैरकानूनी है।

96. लेबनान में अगर कोई पुरुष किसी नर जानवर के साथ यौन क्रियाएं करता पकड़ा जाए, तो उसे मौत की सजा हो सकती है। लेकिन अगर नर की जगह मादा जानवर हो, तो फिर किसी तरह के सजा का प्रावधान नहीं है।

97. मिनेसोटा में कपड़े धोने वक्त एक ही वाशिंग लाइन पर पुरुष और महिलाओं के अंत: वस्त्र रखना गैरकानूनी है।

98. टेक्सास में खुद की आंखों को बेचना गैरकानूनी है।

99. केंटुकी में छह फीट से ज्यादा लंबे हथियार को छुपा कर ले जाना गैरकानूनी है।

100. मोन्टाना में फोनबुक को आधे हिस्से में फाड़ना गैरकानूनी है।


शनिवार, 19 मई 2018

कैंसर ईलाज मुश्किल है पर नामुमकिन नही।।

नमस्कार दोस्तो में योगेन्द्र आपका स्वागत करता हुं अपने नये ब्लाॅग गजब दुनिया पर। दोस्तो इस ब्लाॅग पर ये मेरा पहला पोस्ट हैं आशा करता हुं आपको जानकारी अच्छी लगेगी। तो चलिऐ दोस्तो आज जानते हैं कैंसर ईलाज मुश्किल हैं पर नामुमकिन नही।

डॉ योहाना बडविग (जन्म 30 सितम्बर, 1908 –मृत्यु 19 मई 2003) विश्व विख्यात जर्मन जीव रसायन विशेषज्ञ और चिकित्सक थी। उन्होंने भौतिक जीव रसायन तथा भेषज विज्ञान में मास्टर की डिग्री हासिल की थी और प्राकृतिक-चिकित्सा विज्ञान में पी.एच.डी. भी की थी। वे जर्मन सरकार के खाद्य और भेषज विभाग में सर्वोच्च पद पर कार्यरत थीं तथा वे जर्मनी व यूरोप की विख्यात वसा और तेल विशेषज्ञ मानी जाती थी। उन्होंने वसा, तेल तथा कैंसर के उपचार के लिए बहुत शोध-कार्य किये थे। वे आजीवन शाकाहारी रहीं और जीवन के अंतिम दिनों में भी सुंदर, स्वस्थ व अपनी आयु से काफी युवा लगती थी।
1923 में डॉ. ओटो वारबर्ग ने कैंसर के मुख्य कारण की खोज कर ली थी, जिसके लिये उन्हें 1931 में नोबल पुरस्कार दिया गया था।  उन्होंने कोशिकाओं की श्वसन क्रिया और चयापचय पर बहुत परीक्षण किये थे। उन्होंने पता लगाया था कि कैंसर का मुख्य कारण कोशिकाओं में होने वाली श्वसन क्रिया का बाधित होना है। सामान्य कोशिकाएं अपने चयापचय हेतु ऊर्जा ऑक्सीजन से ऊर्जा ग्रहण करती हैं। जबकि कैंसर कोशिकाऐं ऑक्सीजन के अभाव और अम्लीय माध्यम में ही फलती फूलती है। कैंसर कोशिकायें ऑक्सीजन द्वारा श्वसन क्रिया नहीं करती हैं तथा वे ग्लूकोज को फर्मेंट करके ऊर्जा प्राप्त करती है, जिसमें लेक्टिक एसिड बनता है और शरीर में अम्लता बढ़ती है। यदि सामान्य कोशिकाओं को ऑक्सीजन की आपूर्ति 48 घन्टे के लिए लगभग 35 प्रतिशत कम कर दी जाए तो वे कैंसर कोशिकाओं में परिवर्तित हो जाती हैं। यदि कोशिकाओं को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती रहे तो कैंसर का अस्तित्व संभव ही नहीं है। वारबर्ग ने कैंसर कोशिकाओं में ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाने के लिए कई परीक्षण किये थे परन्तु वे असफल रहे।
बडविग ने डॉ. कॉफमेन के साथ मिल कर पहली बार जीवित ऊतक में आवश्यक वसा-अम्ल ओमेगा-3 व ओमेगा-6 को पहचानने की पेपर क्रोमेटोग्राफी तकनीक विकसित की थी। और ओमेगा-3 के हमारे शरीर पर होने वाले चमत्कारी प्रभावों का अध्ययन किया था। उन्होंने यह भी बतलाया था कि ओमेगा-3 किस प्रकार हमारे शरीर को विभिन्न बीमारियों से बचाते हैं और शरीर को स्वस्थ रखने के लिए हमारे आहार में ओमेगा-3 व ओमेगा-6 का अनुपात 1:2 या 1:4 रहना चाहिये। इसीलिये उन्हें “ओमेगा-3 लेडी” के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने पूर्ण या आंशिक हाइड्रोजिनेटेड वसा मार्जरीन (वनस्पति घी), ट्रांसफैट व रिफाइण्ड तेलों के हमारे स्वास्थ्य पर पड़ने वाले घातक दुष्प्रभावों का भी पता लगाया था। इसलिए वे मार्जरीन, हाइड्रोजिनेटेड वसा और रिफाइंड तेलों को प्रतिबंधित करना चाहती थी, जिसके कारण खाद्य तेल और मार्जरीन बनाने वाले संस्थान उनसे काफी नाराज थे और बहुत परेशानी में थे।

डॉ. योहाना ने वारबर्ग के शोध को जारी रखा। वर्षों तक खोज करके पता लगाया कि इलेक्ट्रोन युक्त, अत्यन्त असंतृप्त ओमेगा–3 वसा से भरपूर अलसी, जिसे अंग्रेजी में Linseed या Flaxseed कहते हैं, का तेल कोशिकाओं में नई ऊर्जा भरता है, उनकी स्वस्थ भित्तियों का निर्माण करता है और कोशिकाओं में ऑक्सीजन को आकर्षित करता है। परंतु इनके सामने मुख्य समस्या यह थी कि रक्त मे अघुलनशील अलसी के तेल को कोशिकाओं तक कैसे पहुँचाया जाये। कई परीक्षण करने के बाद डॉ. योहाना ने पाया कि अलसी के तेल को सल्फर युक्त प्रोटीन जैसे पनीर साथ मिलाने पर वह पानी में घुलनशील बन जाता है और तेल सीधा कोशिकाओं तक पहुँचता है। इसलिए  उन्होने सीधे बीमार लोगों के रक्त के नमूने लिये और उनको अलसी का तेल तथा पनीर मिला कर  देना शुरू कर दिया। तीन महीने बाद फिर उनके रक्त के नमूने लिये गये।  नतीजे चौंका देने वाले थे। डॉ. बडविग द्वारा एक महान खोज हो चुकी थी। कैंसर के इलाज में सफलता की पहली पताका लहराई जा चुकी थी। लोगों के रक्त में फोस्फेटाइड और लाइपोप्रोटीन की मात्रा काफी बढ़ गई थी और अस्वस्थ हरे पीले पदार्थ की जगह लाल हीमोग्लोबिन ने ले ली थी। कैंसर के रोगी ऊर्जावान और स्वस्थ दिख रहे थे,  उनकी गांठे छोटी हो गई थी, वे कैंसर को परास्त कर रहे थे। उन्होने अलसी के तेल और पनीर के जादुई और आश्चर्यजनक प्रभाव दुनिया के सामने सिद्ध कर दिये थे।
   
इस तरह 1952 में डॉ. योहाना ने ठंडी विधि से निकले अलसी के तेल व पनीर के मिश्रण तथा कैंसर रोधी फलों व सब्जियों के साथ कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया था, जो बडविग प्रोटोकोल के नाम से विख्यात हुआ। नेता और नोबेल पुरस्कार समिति के सदस्य इन्हें नोबल पुरस्कार देना चाहते थे पर उन्हें डर था कि इस उपचार के प्रचलित होने और मान्यता मिलने से 200 बिलियन डालर का कैंसर व्यवसाय (कीमोथैरेपी  और विकिरण चिकित्सा उपकरण बनाने वाले बहुराष्ट्रीय संस्थान) रातों रात धराशाही हो जायेगा। इसलिए उन्हें कहा गया कि आपको कीमोथैरेपी  और रेडियोथैरेपी   को भी अपने उपचार में शामिल करना होगा। उन्होंने सशर्त दिये जाने वाले नोबल पुरस्कार को एक नहीं सात बार ठुकराया। 
यह सब देखकर कैंसर व्यवसाय से जुड़े मंहगी कैंसररोधी दवाईयां और रेडियोथैरेपी   उपकरण बनाने वाले संस्थानों की नींद हराम हो रही थी। उन्हें डर  था कि यदि यह उपचार प्रचलित होता है तो उनकी कैंसररोधी दवाईयां और कीमोथेरिपी उपकरण कौन खरीदेगा ? इस कारण सभी बहुराष्ट्रीय संस्थानों ने उनके विरूद्ध कई षड़यन्त्र रचे। ये नेताओं और सरकारी संस्थाओं के उच्चाधिकारियों को रिश्वत देकर डॉ. योहाना को प्रताड़ित करने के लिए बाध्य करते रहे। फलस्वरूप इन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा, इनसे सरकारी प्रयोगशाला छीन ली गई और इनके शोध पत्रों के प्रकाशन पर भी रोक लगा दी गई।
विभिन्न बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने इन पर तीस से ज्यादा मुकदमें दाखिल किये थे। डॉ. बडविग ने अपने बचाव हेतु सारे दस्तावेज स्वंय तैयार किये और अन्तत: सारे मुकदमों मे जीत भी हासिल की। कई न्यायाधीशों ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लताड़ लगाई और कहा कि डॉ. बडविग द्वारा प्रस्तुत किये गये शोध पत्र सही हैं, इनके प्रयोग वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित हैं, इनके द्वारा विकसित किया गया उपचार जनता के हित में है और आम जनता तक पहुंचना चाहिए। इन्हे व्यर्थ परेशान नहीं किया जाना चाहिए।
वे 1952 से 2002 तक कैंसर के हजारों रोगियों का उपचार करती रहीं। अलबर्ट आईन्स्टीन ने एक बार कहा था कि आधुनिक युग में भोजन ही दवा का काम करेगा और बडविग ने इस तथ्य को सिद्ध करके दिखलाया। कैंसर के अलावा इस उपचार से डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, आर्थ्राइटिस, हृदयाघात, अस्थमा, डिप्रेशन आदि बीमारियां भी ठीक हो जाती हैं। डॉ.योहाना के पास अमेरिका व अन्य देशों के डाक्टर मिलने आते थे, उनके उपचार की प्रसंशा भी करते थे पर उनके उपचार से व्यावसायिक लाभ अर्जित करने हेतु आर्थिक सौदे बाज़ी की इच्छा व्यक्त करते थे। वे भी पूरी दुनिया का भ्रमण करती थीं। अपनी खोज के बारे में व्याख्यान देती थी। उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी थी जिनमें “फैट सिंड्रोम”, “डैथ आफ ए ट्यूमर”, “फ्लेक्स आयल – अ ट्रू एड अगेन्स्ट आर्थाइटिस, हार्ट इन्फार्कशन, कैंसर एण्ड अदर डिजीज़ेज”, “आयल प्रोटीन कुक बुक”, “कैंसर – द प्रोबलम एण्ड सोल्यूशन” आदि मुख्य हैं। उन्होंने अपनी आखिरी पुस्तक 2002 में लिखी थी।
एक बार स्टुटगर्ट के साउथ जर्मन रेडियो स्टेशन पर 9 नवम्बर,1967 (सोमवार) को रात्रि के पौने नौ बजे प्रसारित  साक्षात्कार में डॉ. बडविग ने सिर उठा  कर गर्व से कहा था और जिसे पूरी दुनिया ने सुना था कि यह अचरज की बात है  कि मेरे उपचार द्वारा कैंसर कितनी जल्दी ठीक होता है। 84 वर्ष की एक महिला को आँत का कैंसर था, जिसके कारण आंत में रुकावट आ गई थी और आपातकालीन शल्यक्रिया होनी थी। मैंने उसका उपचार किया जिससे कुछ ही दिनों में उसके कैंसर की गाँठ पूरी तरह खत्म हो गई, ऑपरेशन भी नहीं करना पड़ा और वह  स्वस्थ हो गई। इसका जिक्र मैंने मेरी पुस्तक द डैथ ऑफ ए ट्यूमर  की पृष्ठ संख्या 193-194 में किया है।  अस्पताल कैंसर के वे रोगी जिन्हें रेडियोथैरेपी और कीमोथैरेपी से कोई लाभ नहीं होता है और जिन्हें से यह कह कर छुट्टी दे दी जाती है कि अब उनका कोई इलाज संभव नहीं है,  भी मेरे उपचार से ठीक हो जाते हैं और इन रोगियों में भी मेरी सफलता की दर 90% है। 
प्रकाश सबसे तेज चलता है। क्वांटम भौतिकी के अनुसार सूर्य की किरणों के सबसे छोटे घटक या कण को क्वांटम या फोटोन कहते हैं जो अनंत हैं, शाश्वत हैं, सक्रिय हैं, सदैव हैं, ऊर्जावान हैं और गतिशील हैं। इन्हें कोई नहीं रोक सकता है। ये ऊर्जा का सबसे परिष्कृत रूप हैं, ये सबसे निर्मल लहर हैं। इनमें ब्रह्मांड के सारे रंग है। ये अपना रंग, प्रकृति और आवृत्ति बदल सकते हैं।
इलेक्ट्रोन परमाणु का घटक है और न्यूक्लियस के चारों ओर अपने निश्चित कक्ष में निश्चित आवृत्ति में सदैव परिक्रमा करते रहते हैं, सदैव गतिशील रहते हैं। इलेक्ट्रोन का चुम्बकीय क्षेत्र अत्यन्त गतिशील फोटोन को अपनी ओर आकर्षित करता है, जब भी कोई विद्युत आवेश गतिशील होता है तो एक चुम्बकीय क्षेत्र बनता है। गतिशील फोटोन का भी चुम्बकीय क्षेत्र होता है। जब इलेक्ट्रोन और फोटोन के चुम्बकीय क्षेत्र समान आवृत्ति पर गुंजन करते हैं तो ये एक दूसरे को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
फोटोन सूर्य से निकलकर, जो 9.3 अरब मील दूर है, असीम ऊर्जा लेकर, जीवन की आस लेकर, प्यार की बहार लेकर, खुशियों की सौगात लेकर आते हैं, अपनी लय, ताल व आवृत्ति बदल कर इलेक्ट्रोन, जो अपने कक्ष में सदैव परिक्रमा करते रहते हैं, की ओर आकर्षित होते हैं, साथ मिल कर नृत्य करते हैं और तब पूरा कक्ष समान आवृत्ति में दिव्य गुंजन करता है और असीम सौर ऊर्जा का प्रवाह होता है। यही है जीवन का असली फलसफा, प्रेम का उत्सव, यही है प्रकृति का संगीत। यही है फोटोन रूपी सूर्य और इलेक्ट्रोन रूपी चंद्र का पारलौकिक गंधर्व विवाह, यही है शिव और पार्वति का ताण्डव नृत्य, यही है विष्णु और लक्ष्मी की रति क्रीड़ा, यही है कृष्ण और राधा का अनंत, असीम प्रेम।
हमें सूर्य से बहुत प्रेम है और यह मात्र संयोग नहीं है। हमारे शरीर की लय सूर्य की लय से इतनी मिलती है कि हम सूर्य की ऊर्जा का सबसे ज्यादा अवशोषण करते हैं। इसलिए क्वांटम वैज्ञानिक कहते हैं कि संपूर्ण ब्रह्मांड में सबसे ज्यादा सौर ऊर्जा या फोटोन मनुष्य के शरीर में ही होते हैं। यह क्षमता और बढ़ जाती है जब हम इलेक्ट्रोन से भरपूर अत्यंत असंतृप्त वसा-अम्ल (अलसी जिनका भरपूर स्रोत है) का सेवन करते हैं। विख्यात क्वांटम भौतिकशास्त्री डेसौर ने कहा है कि यदि हम मानव शरीर में सौर फोटोन्स की संख्या दस गुना कर दें तो मनुष्य की उम्र 10,000 वर्ष हो जायेगी।  
अलसी के तेल में अल्फा–लिनोलेनिक एसिड (ए.एल.ए.) नामक ओमेगा–3 वसा-अम्ल होता है। डॉ. बडविग ने ए.एल.ए. की अद्भुत संरचना का गूढ़ अध्ययन किया था। ए.एल.ए. में 18 कार्बन के परमाणुओं की लड़ी या श्रंखला होती है जिसके एक सिरे से, जिसे ओमेगा सिरा कहते हैं,मिथाइल (CH3) ग्रुप जुड़ा रहता है और दूसरे से, जिसे डेल्टा सिरा कहते हैं, कार्बोक्सिल (COOH) जुड़ा रहता है। ए.एल.ए. में 3 द्वि-बंध ओमेगा सिरे से क्रमशः तीसरे, छठे और नवें कार्बन परमाणु के बाद होते हैं
चूंकि पहला द्वि-बंध तीसरे कार्बन के बाद होता है इसीलिए इसको ओमेगा–3 वसा अम्ल (N-3) कहते हैं। ए.एल.ए. हमारे शरीर में नहीं बन सकते हैं, इसलिए इनको “आवश्यक वसा अम्ल” कहते हैं। अत: इनको भोजन द्वारा लेना अति “आवश्यक” है। ए.एल.ए की कार्बन श्रंखला में जहां द्वि-बंध बनता है और दो हाइड्रोजन के परमाणु अलग होते हैं, वहां इलेक्ट्रोन्स का बडा झुण्ड या बादल सा, जिसे  “पाई–इलेक्ट्रोन्स” भी कहते हैं, बन जाता है और इस जगह ए.एल.ए. की लड़ मुड़ जाती है। इलेक्ट्रोन के इस बादल में अपार विद्युत आवेश रहता है जो सूर्य ही नहीं बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड से आने वाले प्रकाश की किरणों के सबसे छोटे घटक फोटोन्स को आकर्षित करते हैं, अवशोषण करते हैं। ओमेगा-3 ऑक्सीजन को कोशिका में खींचते हैं, प्रोटीन को आकर्षित करते हैं। ये पाई–इलेक्ट्रोन ऊर्जा का संग्रहण करते हैं और एक एन्टीना की तरह काम करते हैं। यही है जीवन-शक्ति जो हमारे पूरे शरीर विशेष तौर पर मस्तिष्क ऑखों हृदय, मांसपेशियां नाड़ीतंत्र  कोशिका की भित्तियों आदि को भरपूर ऊर्जा देती है।
डॉ. बडविग आहार में प्रयुक्त खाद्य पदार्थ ताजा, इलेक्ट्रोन युक्त और जैविक होने चाहिए। इस आहार में अधिकांश खाद्य पदार्थ सलाद और रसों के रूप में लिये जाते है, जिन्हें ताजा तैयार किया जाना चाहिए ताकि रोगी को भरपूर इलेक्ट्रोन्स मिले। डॉ. बडविग ने इलेक्ट्रोन्स पर बहुत जोर दिया है। अलसी के तेल में भरपूर इलेक्ट्रोन्स होते हैं और डॉ. बडविग ने अन्य इलेक्ट्रोन्स युक्त और एंजाइम्स से भरपूर खाद्य-पदार्थ भी ज्यादा से ज्यादा लेने की सलाह दी है।
कई रोगी विशेष तौर पर जिन्हें यकृत और अग्न्याशय का कैंसर होता है,  शुरू में सम्पूर्ण बडविग आहार पचा नहीं पाते हैं। ऐसी स्थिति में डॉ. बडविग कुछ दिनों तक रोगियों को अंतरिम या ट्रांजीशन आहार लेने की सलाह देती थी। अंतरिम आहार में रोज 250 ग्राम अलसी दी जाती है। कुछ दिनों तक रोगी को ओटमील (जई का दलिया) के सूप में ताजा पिसी हुई अलसी मिला कर दिन में कई बार दी जाती है। इस सूप को बनाने के लिए एक पतीली में 250 एम एल पानी लें और तीन बड़ी चम्मच ओटमीन डाल कर पकायें।
ओट पक जाने पर उसमें बड़ी तीन चम्मच ताजा पिसी अलसी मिलायें और एक उबाल आने दें। फिर गैस बंद कर दे और दस मिनट तक ढक कर रख दें।  अलसी मिले इस सूप को खूब चबा-चबा कर लार में अच्छी तरह मिला कर खाना चाहिये क्योंकि पाचन क्रिया मुंह में ही शुरू हो जाती है। इस सूप में दूध या संतरा, चेरी, अंगूर, ब्लूबेरी आदि फलों के रस भी मिलाये जा सकते हैं, जो पाचन-शक्ति बढ़ाते हैं। इसके के डेढ़-दो घंटे बाद पपीते का रस, दिन में तीन बार हरी या हर्बल चाय और अन्य फलों के रस दिये जाते हैं। अंतरिम आहार में पपीता खूब खिलाना चाहिये। जैसे ही रोगी की पाचन शक्ति ठीक होने लगती है उसे अलसी के तेल और पनीर से बने ओम-खण्ड की कम मात्रा देना शुरू करते हैं। और धीरे-धीरे मात्रा बढ़ा कर सम्पूर्ण बडविग आहार शुरू कर दिया जाता है।  






इस उपचार में सुबह सबसे पहले एक ग्लास सॉवरक्रॉट (खमीर की हुई पत्ता गोभी) का रस लेना चाहिये। ­इसमें भरपूर एंजाइम्स और विटामिन-सी होते हैं। इसमें कई कैंसररोधी तत्व भी होते हैं जिनमें आइसोथायोसाइनेट,  लेक्टोबेसीलाई जैसे लेक्टोबेसिलाई प्लेन्टेरम आदि प्रमुख है।  लेक्टोबेसिलाई प्लेन्टेरम बहुत महत्वपूर्ण और हितकारी जीवाणु है, जो ग्लुटाथायोन तथा सुपरऑक्साइड डिसम्युटेज जैसे उत्कृष्ट एन्टीऑक्सीडेंट बनाने में मदद करता है। यह बहुत कम खाद्य-पदार्थों में मिलता है। लेक्टोबेसिलाई जटिल शर्करा (जैसे लेक्टोज) तथा प्रोटीन के पाचन में मदद करते हैं, आहारतंत्र में हितकारी प्रोबायोटिक जीवाणुओं का विकास करते हैं और आंतों को स्वस्थ रखते हैं।
सॉवरक्रॉट हमारे देश में उपलब्ध नहीं है परन्तु इसे घर पर पत्ता गोभी को ख़मीर करके बनाया जा सकता है। हां इसे घर बनाना थोड़ा मुश्किल अवश्य है। इसलिए डॉ. बडविग ने भी लिखा है कि सॉवरक्रॉट उपलब्ध न हो तो रोगी एक ग्लास छाछ पी सकता है। छाछ भी घर पर मलाई-रहित दूध से बननी चाहिये। यह अवश्य ध्यान में रखें कि छाछ सॉवरक्रॉट जितनी गुणकारी नहीं है। इसके थोड़ी देर बाद कुछ रोगी गैंहूं के ज्वारे का रस भी पीते हैं।  
नाश्ते से आधा घंटा पहले बिना चीनी की गर्म हर्बल या हरी चाय लें। मीठा करने के लिए एक चम्मच शहद या स्टेविया (जो डॉ. स्वीट के नाम से बाजार में उपलब्ध है) का प्रयोग कर सकते हैं। यह नाश्ते में दिये जाने वाले अलसी मिले ओम-खण्ड के फूलने हेतु गर्म और तरल माध्यम प्रदान करती है।
इस आहार का सबसे मुख्य व्जंजन सूर्य की अपार ऊर्जा और इलेक्ट्रोन्स से भरपूर ओम-खंड है जो अलसी के तेल और घर पर बने वसा रहित पनीर या दही से बने पनीर को मिला कर बनाया जाता है । पनीर बनाने के लिए गाय या बकरी का दूध सर्वोत्तम रहता है। इसे एकदम ताज़ा बनायें और ध्यान रखें कि बनने के 15 मिनट के भीतर रोगी खूब चबा चबा कर आनंद लेते हुए इसका सेवन करें।  ओम-खण्ड बनाने की विधि इस प्रकार है।
3 बड़ी चम्मच यानी 45 एम.एल. अलसी का तेल और 6 बड़ी चम्मच यानी लगभग 100 ग्राम पनीर को बिजली से चलने वाले हेन्ड ब्लेंडर द्वारा एक मिनट तक अच्छी तरह मिक्स करें। तेल और पनीर का मिश्रण क्रीम की तरह हो जाना चाहिये और तेल दिखाई देना नहीं चाहिये। तेल और पनीर को ब्लेंड करते समय यदि मिश्रण गाढ़ा लगे तो पतला करने के लिए 1 या 2 चम्मच दूध मिला लें। पानी या किसी फल का रस नहीं मिलायें। 
• अब मिश्रण में 2 बड़ी चम्मच अलसी ताज़ा मोटी-मोटी पीस कर मिलायें। 
• इसके बाद मिश्रण में आधा या एक कप कटे हुए स्ट्रॉबेरी, रसबेरी, ब्लूबेरी, चेरी, जामुन आदि फल मिलायें। बेरों में शक्तिशाली कैंसररोधी में एलेजिक एसिड होता है। ये फल हमारे देश में हमेशा उपलब्ध नहीं होते हैं। इस स्थिति में आप अपने शहर में मिलने वाले अन्य फलों का प्रयोग कर सकते हैं।  
• इस ओम-खण्ड को आप कटे हुए मेवे जैसे खुबानी, बादाम, अखरोट, काजू, किशमिश, मुनक्के आदि सूखे मेवों से सजायें। ध्यान रहे मूंगफली वर्जित है। मेवों में सल्फर युक्त प्रोटीन, आवश्यक वसा और विटामिन होते हैं। रोगी को खुबानी के 6-8 बीज रोज खाना ही चाहिये। इसमें महान विटामिन बी-17 और बी-15 होते हैं जो कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करते हैं। स्वाद के लिए काली मिर्च, सैंधा नमक, ताजा वनीला, दाल चीनी, ताजा काकाओ, कसा नारियल, सेब का सिरका या नींबू का रस मिला सकते हैं।  मसालों और फलों को बदल-बदल कर आप स्वाद में विविधता और नवीनता ला सकते हैं। 
• डॉ. बडविग ने चाय और ओम-खण्ड को मीठा करने के लिए प्राकृतिक और मिलावट रहित शहद को प्रयोग करने की सलाह दी है। लेकिन ध्यान रहे कि प्रोसेस्ड यानी डिब्बा बन्द शहद प्रयोग कभी नहीं करें और यह भी सुनिश्चित करलें कि बेचने वाले ने शहद में चाशनी की मिलावट तो नहीं की है। दिन भर में 5 चम्मच शहद लिया जा सकता है। ओम खण्ड को बनाने के दस मिनट के भीतर रोगी को ग्रहण कर लेना चाहिए। 
• सामान्यतः ओम-खण्ड लेने के बाद रोगी को कुछ और लेने की जरूरत नहीं पड़ती है। लेकिन यदि रोगी चाहे तो फल, सलाद, सूप, एक या दो मिश्रित आटे की रोटी, ओट मील या का दलिया ले सकता है।   
10 बजे
नाश्ते के एक घंटे बाद रोगी को गाजर  मूली लौकी मेथी पालक, करेला, टमाटर, करेला, शलगम, चुकंदर आदि सब्जियों का रस ताजा निकाल कर पिलायें। सब्जियों को पहले साफ करें, अच्छी तरह धोयें, छीलें फिर घर पर ही अच्छे ज्यूसर से रस निकालें। गाजर और चुकंदर यकृत को ताकत देते हैं और अत्यंत कैंसर रोधी होते हैं। चुकंदर का रस हमेशा किसी दूसरे रस में मिला कर देना चाहिये। ज्यूसर खरीदते समय  ध्यान रखें कि ज्यूसर चर्वण (masticating) विधि द्वारा रस निकाले न कि अपकेंद्री (Centrifugal) विधि द्वारा।  
दोपहर का खाना
नाश्ते की तरह दोपहर के खाने के आधा घंटा पहले भी एक गर्म हर्बल चाय लें। दिन भर में रोगी पांच हर्बल चाय पी सकता है। कच्ची या भाप में पकी सब्जियां जैसे चुकंदर, शलगम, खीरा, ककड़ी, मूली, पालक, भिंडी, बैंगन, गाजर, बंद गोभी, गोभी, मटर, शिमला मिर्च, ब्रोकोली, हाथीचाक, प्याज, टमाटर, शतावर आदि के सलाद को घर पर बनी सलाद ड्रेसिंग,  ऑलियोलक्स या सिर्फ  अलसी के तेल  के साथ लें। हरा धनिया, करी पत्ता, जीरा, हरी मिर्च, दालचीनी, कलौंजी, अजवायन, तेजपत्ता, सैंधा नमक और अन्य मसाले डाले जा सकते हैं। ड्रेसिंग बनाने के लिए 2 चम्मच अलसी के तेल व 2 चम्मच पनीर के मिश्रण में एक चम्मच सेब का सिरका या नीबू के रस और मसाले डाल कर अच्छी तरह ब्लैंडर से मिलायें।  विविधता बनाये रखने के लिए आप कई तरह से ड्रेसिंग बना सकते हैं। हर बार पनीर मिलाना भी जरूरी नहीं है। दही या ठंडी विधि से निकला सूर्यमुखी का तेल भी काम में लिया जा सकता है। अलसी के तेल में अंगूर, संतरे या सेब का रस या शहद मिला कर मीठी सलाद ड्रेसिंग बनाई जा सकती है।
साथ में चटनी (हरा धनिया, पुदीना या नारियल की), भूरे चावल, दलिया, खिचड़ी, इडली, सांभर, कढ़ी, उपमा या मिश्रित आटे की रोटी ली जा सकती है। रोटी चुपड़ने के लिए ऑलियोलक्स प्रयोग करें। मसाले, सब्जियां और फल बदल–बदलकर प्रयोग करें। रोज एक चम्मच कलौंजी का तेल भी लें। भोजन तनाव रहित होकर खूब चबा-चबा कर करें।





ओम-खंड की दूसरी खुराक
रोगी को नाश्ते की तरह ही ओम-खण्ड की एक खुराक दिन के भोजन के साथ देना अत्यंत आवश्यक है। यदि रोगी को शुरू में  अलसी के तेल की इतनी ज्यादा मात्रा पचाने में दिक्कत हो तो कम मात्रा से शुरू करें और धीरे-धीरे बढ़ा कर पूरी मात्रा देने लगें।  
दोपहर बाद
दोपहर बाद अन्नानास, संतरा, मौसम्मी, अनार, चीकू, नाशपाती, चेरी या अंगूर के ताजा निकले रस में एक या दो चम्मच अलसी को ताजा पीस कर मिलायें और रोगी को पिलायें। यदि रस ज्यादा बन जाये और रोगी उसे पीना चाहे तो पिला दें।  रोगी चाहें तो आधा घंटे बाद एक गिलास रस और पी सकता है।
तीसरे पहर
पपीते के एक ग्लास रस में एक या दो चम्मच अलसी को ताजा पीस कर डालें और रोगी को पिलायें। पपीता और अन्नानास के ताजा रस में भरपूर एंज़ाइम होते हैं जो पाचन शक्ति को बढ़ाते हैं।
सायंकालीन भोजन
शाम के भोजन के आधा घन्टा पहले भी रोगी को एक कप हरी या हर्बल चाय पिलायें। सब्जियों का शोरबा या सूप, दालें, मसूर, राजमा, चावल, कूटू, मिश्रित और साबुत आटे की रोटी शायंकालीन भोजन का मुख्य आकर्षण है। सब्जियों का शोरबा, सूप, दालें, राजमा या पुलाव बिना तेल डाले बनायें। मसाले, प्याज, लहसुन, हरा धनिया, करी पत्ता आदि का प्रयोग कर सकते हैं। पकने के बाद ईस्ट फ्लेक्स और ऑलियोलक्स डाल सकते हैं। ईस्ट फ्लेक्स में विटामिन-बी होते हैं जो शरीर को ताकत देते हैं।
टमाटर, गाजर, चुकंदर, प्याज, शतावर, शिमला मिर्च, पालक, पत्ता गोभी, गोभी, आलू, अरबी, ब्रोकोली आदि सभी सब्जियों का सेवन कर सकते हैं। दालें और चावल बिना पॉलिश वाले काम में लें। डॉ. बडविग ने सबसे अच्छा अन्न कूटू (buckwheat) का माना है। इसके बाद बाजरा, रागी, भूरे चावल, गैहूं आते हैं। मक्का खाने के लिए उन्होंने मना किया है।
बडविग प्रोटोकोल के परहेज
बडविग ने निम्न चीजों और खाद्य पदार्थों का सेवन करने के लिए कठोरता पूर्वक मना किया है। 
चीनी
कैंसर के रोगी को किसी भी तरह की चीनी, गुड़, मिश्री, कृत्रिम शर्करा (एस्पार्टेम, जाइलिटोल आदि), चाकलेट, मिठाई, डिब्बाबंद फलों के रस या सॉफ्ट ड्रिंक कभी भी नहीं लेना चाहिये। चीनी कैंसर कोशिकाओं को पोषण देती है। 
ट्रांस फैट, हाइड्रोजनीकृत फैट और रिफाइंड तेल 
तात्पर्य यह है कि आपको मिष्ठान और नमकीन भंडार, फास्ट फूड रेस्टोरेन्ट, बेकरी, जनरल स्टोर और सुपरमार्केट में मिलने वाले सभी खुले या पैकेट बंद बने-बनाये खाद्य पदार्थों से पूरी तरह परहेज करना है। बाजार और फेक्ट्रियों में बनने वाले सभी खाद्य पदार्थ जैसे ब्रेड, केक, पेस्ट्री, कुकीज, बिस्कुट, मिठाइयां, नमकीन, कचौरी, समोसे, बर्गर, पिज्जा, भटूरे आदि (लिस्ट बहुत लंबी है) कैंसरकारी ट्रांसफैट  से भरपूर रिफाइंड तेल या वनस्पति घी से ही बनाये जाते हैं।  मार्जरीन, शोर्टनिंग, वेजीटेबल ऑयल या रिफाइंड ऑयल सभी हाइड्रोजनीकृत वनस्पति घी के ही मुखौटे है। हाइड्रोजनीकरण बहुत ही घातक प्रक्रिया है जो तेलों और वसा की शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए की जाती है, जिससे उनमें ट्रांसफैट बनते हैं, जैविक तथा पोषक गुण खत्म हो जाते हैं और शेष बचता है मृत, कैंसरकारी और पोषणहीन तरल प्लास्टिक। 
तड़का लगाना और तलना बिलकुल बन्द करना होगा
यह बिन्दु बहुत महत्वपूर्ण है। कैंसर के रोगी का खाना पकाने के लिए एक्स्ट्रा वर्जिन नारियल या जैतून का तेल या ऑलियोलक्स ही प्रयोग किया जा सकता है। कैंसर के रोगी के लिए आपको भोजन पकाने के तरीके में बदलाव लाना ही होगा। छौंक या तड़का लगाना और तलना बन्द करना होगा, उबालना और भाप में पकाना खाना बनाने के अच्छे तरीके हैं। नारियल के तेल और ऑलियोलक्स को छोड़ कर आप कोई भी तेल गर्म नहीं करें। गर्म करने से तेलों के सारे ऊर्जावान इलेक्ट्रोन्स और पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं और खतरनाक कैंसरकारी रसायन जैसे एक्रिलेमाइड आदि बन जाते हैं। सब्जियां, शोरबे, सूप और अन्य व्यंजन बनाने के लिए आप प्याज, लहसुन, हरी मिर्च, मसाले आदि को पानी में तलें और जब खाना पक जाये तो बाद में ऊपर से नारियल का तेल या ऑलियोलक्स डाल सकते हैं। लेकिन कभी-कभी नारियल का तेल या ऑलियोलक्स एक या दो मिनट के लिए धीमी आंच पर गर्म किया जा सकता है।   
मांसाहार
बडविग ने हर तरह का मांस, मछली और अंडा खाने को मना किया है। प्रिजर्व किया हुआ मीट तो विष के समान है। मीट को प्रिजर्व करने के लिए उसे गर्म किया जाता है, घातक एंटीबायोटिक, परिरक्षण रसायन (  (Preservatives), रंग और कृत्रिम स्वादवर्धक रसायन मिलाये जाते हैं।  
रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट
कैंसर के रोगी को विटामिन और रेशा रहित रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट जैसे मैदा, पॉलिश्ड चावल या धुली दालों का प्रयोग नहीं करना चाहिये। बाजार में उपलब्ध ब्रेड, बन, पाव, बिस्कुट, केक, पास्ता, भटूरा, समोसा, कचौड़ी आदि सभी मैदा से ही बनाये जाते हैं। 
बाजार में उपलब्ध सोयाबीन और दुग्ध उत्पाद
कैंसर के रोगी को घी, मक्खन, पैकेटबंद दुग्ध उत्पाद और सोयाबीन उत्पाद प्रयोग नहीं करना चाहिये। हां खमीरीकृत सोयासॉस का प्रयोग किया जा सकता है। 
माइक्रोवेव और अल्युमीनियम
भोजन पकाने के लिए माइक्रोवेव का प्रयोग कभी भी नहीं करे। माइक्रोवेव खाने को विषैला और विकृत कर देती है और तुरन्त प्रतिबंधित हो जानी चाहिये। यदि आपके घर में माइक्रोवेव ऑवन है तो उसे पैक करके आपके किसी बड़े दुश्मन को भैंट कर दें। टेफ्लोन कोटेड, एल्युमीनियम, हिंडोलियम और प्लास्टिक के बर्तन तथा एल्युमीनियम फोइल कभी भी काम में न लें। स्टेनलेस स्टील, लोहा, एनामेल, चीनी या कांच के  बर्तन उपयुक्त रहते हैं। 
कीमोथैरेपी और रेडियोथैरेपी
डॉ. बडविग कीमोथैरेपी और रेडियोथैरेपी के सख्त खिलाफ थी और कहती थी कि यह कैंसर के मूल कारण पर प्रहार नहीं करती है। उनके अनुसार तो यह एक निरर्थक, दिशाहीन, कष्टदायक और मारक उपचार है, जो कैंसर कोशिकाओं को मारने के साथ साथ शरीर की बाकी स्वस्थ कोशिकाओं को भी भारी क्षति पहुँचाता है। जिससे शरीर की कैंसर को त्रस्त और ध्वस्त करने की क्षमता (Immunity) भी घटती है। इन सबके बाद भी अधिकतर मामलों में एलोपैथी नाकामयाब ही रहती है। डॉ. बडविग कड़े और स्पष्ट शब्दों में गर्व से कहा करती थी कि मेरा उपचार कैंसर के मुख्य कारण (कोशिका में ऑक्सीजन की कमी) पर प्रहार करता है, कैंसर कोशिकाओं में ऊर्जावान इलेक्ट्रोन्स का संचार करता है, कोशिका को प्राणवायु (ऑक्सीजन) से भर देता है तथा कैंसर कोशिका खमीरीकरण (ऑक्सीजन के अभाव में ऊर्जा उत्पादन का जुगाड़ू तरीका) छोड़ कर वायवीय सामान्य श्वसन (Normal Aerobic Respiration) द्वारा भर पूर ऊर्जा बनाने लगती है और कैंसर का अस्तित्व खत्म होने लगता है। और उन्होंने इसे सिद्ध भी किया। वे तो एलोपैथी की दर्दनाशक व अन्य दवाओं और सिंथेटिक विटामिन्स की जगह प्राकृतिक, आयुर्वेद और होमयोपैथी उपचार की अनुशंसा करती थी। 
अन्य निषेध






बडविग उपचार में कीटनाशक, रसायन, सिंथेटिक कपड़ों, मच्छर मारने के स्प्रे, घातक रसायनों से बने सौदर्य प्रसाधन, सनस्क्रीन लोशन, धूप के चश्में, बीड़ी, सिगरेट, तम्बाखू, गुटका, सिंथेटिक (नायलोन, एक्रिलिक, पॉलीएस्टर आदि) कपड़े, फोम के गद्दे-तकिये आदि भी वर्जित हैं। सी.आर.टी. टीवी, मोबाइल फोन से भी कैंसरकारी खतरनाक विकिरण निकलता है। एल.सी.डी. या प्लाज्मा टीवी सुरक्षित माने गये हैं। कैंसर के रोगी को तनाव, अवसाद और क्रोध छोड़ कर संतुष्ट, शांत और प्रसन्न रहने की आदत डाल लेनी चाहिये। 
बासी कुछ न लें
बडविग आहार में रोगी को कोई भी बासी व्यंजन नहीं देना चाहिये। हर व्यंजन ताजा बनना चाहिये। 
बडविग आहार के महत्वपूर्ण बिन्दु
प्राकृतिक मिठास
स्टेविया, प्राकृतिक शहद, खजूर, अंजीर, बेरी प्रजाति और अन्य फलों के रस से आप अपने भोजन और जीवन में मिठास ला सकते हैं।  लेकिन ध्यान रहे कि प्रोसेस्ड यानी डिब्बा बन्द शहद कभी प्रयोग नहीं करें और यह भी सुनिश्चित करलें कि बेचने वाले ने शहद में चाशनी की मिलावट तो नहीं की है।
मसाले
सभी प्राकृतिक मसाले और हर्ब्स ली जा सकती हैं। 
मेवे
मूंगफली के अलावा सारे मेवे या सूखे फल खाना चाहिये। कैंसर के रोगी को मेवे खूब खाने चाहिये। मेवों में अच्छे आवश्यक वसा-अम्ल, विटामिन्स और सल्फरयुक्त प्रोटीन होते हैं। मेवों को कभी भी सेकना, भूनना या पकाना नहीं चाहिये। गर्म करने से इनके बहुमूल्य पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। खुबानी के छोटी सी बादाम जैसे दिखने वाले बीजों में महान विटामिन बी-17 और बी-15 होते हैं जो कैंसर कोशिकाओं को मारते हैं। कद्दू और सूर्यमुखी के बीज भी बहुत लाभदायक हैं।
जैविक भोजन 
डॉ. बडविग ने स्पष्ट निर्देश दिये हैं कि कैंसर के रोगी को जैविक खाद्य पदार्थ ही प्रयोग करने चाहिये। लेकिन कई बार हमारे देश में जैविक खाद्य पदार्थ हर जगह नहीं मिलते हैं। मंहगे होने के कारण भी कई रोगी जैविक खाद्य पदार्थ खरीद भी नहीं पाते हैं। कुछ ठोस और कड़ी सब्जियां जैसे गाजर, मूली आदि में कीटनाशक और रसायन इनके गूदे या रेशों में होते हैं। यदि हमें इनका रस ही काम में लेना है तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि ज्यूसर गूदे और रेशों को तो बाहर फैंक देता है। दूसरी तरफ कुछ सब्जियां और फल जैसे पालक, हरी मटर, शिमला मिर्च, हरी बीन्स, हरा प्याज, आलू, सेब, आड़ू, नाशपाती, चेरी, स्ट्रॉबेरी, ब्लेकबेरी, रसभरी आदि हमेशा जैविक ही प्रयोग करना चाहिये क्योंकि इन पर कीटनाशक और प्रिजरवेटिव्स का छिड़काव  बहुत होता है। 
जो फल और सब्जियां आपको जैविक नहीं मिल पाते हैं, तो आप उन्हें निम्न तरीके से धोकर भी कुछ हद तक कीटनाशक और रसायनों से मुक्त कर सकते हैं। पहले आप फल और सब्जियों को सादा पानी से अच्छी तरह धोयें। फिर  एक पानी से भरे बड़े बरतन में 3 प्रतिशत हाइड्रोजन-परऑक्साइड का चौथाई ग्लास और 3 टेबल स्पून खाने का सोडा  डाल कर अच्छी तरह हिला लें। इस बर्तन में फल और सब्जियों को डाल दें। दस मिनट बाद इन्हें साफ पानी से अच्छी तरह धोकर काम में ले सकते हैं।   
निर्मल जल
रोगी के पीने और भोजन बनाने के लिए पानी स्वच्छ और निर्मल जल प्रयोग करना चाहिये। निर्मल जल के लिए आप रिवर्स ओस्मोसिस तकनीक पर काम करने वाला एक अच्छा वॉटर प्युरीफायर खरीद लें।
धूप-सेवन
रोज सूर्य की धूप का सेवन करना अनिवार्य है। जब रोगी बडविग का आवश्यक वसा से भरपूर आहार लेना शुरू करता है, तो दो या तीन दिन बाद ही उसको धूप में बैठना सुहाना लगने लगता है, सूर्य जीवन की शक्तियों को जादू की तरह उत्प्रेरित करने लगता है और शरीर दिव्य ऊर्जा से भर जाता है। इससे विटामिन-डी प्राप्त होता है। रोजाना दस-दस मिनट के लिए दो बार कपड़े उतार कर धूप में लेटना आवश्यक है। पांच मिनट सीधा लेटे और करवट बदलकर पांच मिनट उल्टे लेट जायें ताकि शरीर के हर हिस्से को सूर्य के प्रकाश का लाभ मिले। धूप में लेटते समय कोई सन लोशन प्रयोग नहीं करें।
अलसी और उसका तेल
अलसी को जब आवश्यकता हो तभी ताजा पीसना चाहिये। पीसने के लिए आप एक छोटा कॉफी ग्राइंडर खरीद लें, इसमें एक या दो चम्मच अलसी भी आसानी से पिस जाती है। ध्यान रहे पीसने के बीस मिनट बाद अलसी के कैंसररोधी गुण नष्ट हो जाते हैं। इसलिए अलसी को पीसने के तुरन्त बाद व्यंजन में मिला कर रोगी को खिला दें।  पीसने के बाद ग्राइंडर के जार को अच्छी तरह साफ करने के बाद धोकर रखें।  अलसी का तेल ठंडी विधि (Cold pressed) द्वारा निकला हुआ ही प्रयोग करें। भारत में दो या तीन कंपनियां ही अच्छा तेल बनाती हैं। अलसी का तेल 42 डिग्री सेल्सियस पर खराब हो जाता है, इसलिए इसे कभी भी गर्म नहीं करना चाहिये और हमेशा  फ्रीज या डीप-फ्रीजर में ही रखना चाहिये। फ्रीज में यह 4-5 महीने तक खराब नहीं होता है और डीप-फ्रीजर में रखा जाये तो इसकी गुणवत्ता 9 महीने तक बनी रहती है। यह तेल गर्मी, प्रकाश व वायु के संपर्क में आने पर खराब हो जाता है। इसलिए कंपनियां तेल को गहरे रंग की शीशियों में नाइट्रोजन भर कर पैक करती हैं।
बडविग प्रोटोकोल कब तक लेना है
जो रोगी इस उपचार को श्रद्धा, विश्वास, भावना और पूर्णता से लेते हैं, उन्हें लगभग तीन महीने बाद स्वास्थ्य लाभ मिलने लगता है। और लगभग एक वर्ष में रोगी का कैंसर ठीक हो जाता है। लेकिन कैंसर ठीक होने के बाद भी कम से कम पांच वर्ष तक रोगी को बडविग प्रोटोकोल लेते रहना चाहिये और आहार विहार भी सात्विक रखना चाहिये। उसके बाद भी दिन में एक बार ओम खंड तो आजीवन लेना ही चाहिये। इस उपचार के बारे में कहा जाता है कि छोटी-छोटी बातें भी महत्वपूर्ण हैं। और जरा सी असावधानी इस उपचार के संतुलन को बिगाड़ सकती है। डॉ. बडविग ने स्पष्ट लिखा है कि यदि आपको मेरे उपचार से फायदा नहीं हो तो आप इस उपचार को दोष देने के बजाये यह देखें कि कहीं आप उपचार लेने में कोई गलती तो नहीं कर रहे हैं।
शांत और तनावमुक्त रहिये
बडविग ने मनुष्य को शरीर, आत्मा और मन के समन्वय से बनी एक इकाई माना है और स्पष्ट लिखा है कि कैंसर को परास्त करने के लिए जरूरी है कि हम इन तीनों को निरामय रखें। उन्होंने यह भी कहा है कि साक्षात्कार के समय कैंसर के अधिकांश रोगी बतलाते हैं कि वे पिछले कुछ वर्षों में बड़े संताप से गुजरे हैं जैसे गहरा मानसिक या आर्थिक आघात, परिवार में किसी प्रिय सदस्य जैसे पति, पत्नि, औलाद या मित्र की मृत्यु, जीवन साथी या परिवार में किसी से कटु सम्बंध या अलगाव आदि। अवसाद और तनाव भी कैंसर का एक महत्वपूर्ण  कारण है। रोगी को प्राणायाम, ध्यान व जितना संभव हो हल्का फुल्का व्यायाम या योगा करना है। 10-15 मिनट तक आंखें बंद करके गहरी सांस लेना और सांस पर ध्यान स्थिर करना भी मन को बहुत शान्ति और सुकून देता है। थोड़ा बहुत सुबह या शाम को टहलने निकलें। घर का वातावरण तनाव मुक्त, खुशनुमा, प्रेममय, आध्यात्मिक व सकारात्मक रहना चाहिये। आप मधुर संगीत सुनें, नाचें-गाएं,  खूब हंसें, खेलें कूदें। क्रोध न करें।
सप्ताह में दो-तीन बार इप्सम-स्नान, वाष्प-स्नान या सोना-बाथ लेना चाहिए। जादू की थप्पी (Emotional Freedom Technique) से नकारात्मक भावनाओं, दर्द या अन्य तकलीफें दूर हो सकती हैं। 
शैम्पेन और रेड वाइन
बडविग ने फैट सिंड्राम नामक पुस्तक के पृष्ठ संख्या 150 पर लिखा है कि कैंसर की अन्तिम अवस्था से जूझ रहे रोगी दिन में दो बार तक शैम्पेन के एक ग्लास में अलसी मिला कर पी सकते हैं। उन्होंने शाम को रेड वाइन में पिसी अलसी मिला कर पिलाने की बात भी कही है। हालांकि उन्होंने इसे प्रोटोकोल का आवश्यक हिस्सा नहीं माना है। उन्होंने कहा है कि मैं इसे बहुत ही अहम कारण से प्रयोग करती हूँ। यह गंभीर रोगी के बिगड़े हुए हाजमें को ठीक करती है और कैंसर की गहरी पीड़ा, तनाव और संताप में मरहम का काम करती है। मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि आप कैंसर के रोगी को शैम्पेन और रेड वाइन के अलावा किसी भी तरह की कोई अन्य मदिरा नहीं पिलायें। उन्होंने यह भी कहा है कि ध्यान रहे कि शैम्पेन प्राकृतिक तथा जैविक हो और उनमें कोई भी रसायन मिला हुआ नहीं हो। लेकिन ये बहुत मंहगी होती है और भारत में तो क्या विदेशों में भी मिलना मुश्किल है।   
दांत रखें स्वस्थ
अपने दांतो की पूरी देखभाल रखना है। दांतो को इंफेक्शन से बचाना चाहिये।
ऑलियोलक्स
ऑलियोलक्स की रचना डॉ. बडविग ने बड़ी सूझबूझ से की है। ऑलियोलक्स का मतलब (Oleolux – Oleo = oil & Lux  = Light) सूर्य की ऊर्जा से भरपूर तेल है । प्याज और लहसुन में सल्फर युक्त प्रोटीन होते हैं जो अलसी के तेल को खराब होने से बचाते हैं। नारियल के तेल में संत्रप्त वसा अम्ल होते हैं, जिनमें मध्यम लंबाई की कार्बन की लड़ होती है। नारियल का तेल स्वास्थ्यवर्धक, कैंसररोधी और वायरसरोधी होता है और कॉलेस्ट्रोल नहीं बढ़ाता है। इसे हृदय रोग के लिए भी कल्याणकारी माना गया है। इसे एड्स के उपचार में भी प्रयोग किया जाता है। नारियल का तेल गर्म करने पर खराब नहीं होता है। पकाने, भूनने, तलने और तड़का लगाने के लिए सर्वश्रेष्ठ तेल माना गया है। ऑलियोलक्स मक्खन का अच्छा विकल्प है। डॉ. बडविग ने अपनी बेस्ट-सेलर ऑयल प्रोटीन कुक बुक में ऑलियोलक्स का खूब प्रयोग किया है। इसे दो-चार मिनट तक गर्म किया जा सकता है। इसे आप रोटी चुपड़ने, सब्जी या शोरबा बनाने, सलाद में डालने या हल्का-फुल्का तलने या तड़का लगाने के काम में ले सकते हैं। 
 सामग्री –
एक्स्ट्रा-वर्जिन नारियल का तेल                           
अलसी के तेल                                        
मध्यम आकार के प्याज   लगभग 100 ग्राम               
लहसुन की छिली हुई कलियां                             
फ्राइंग पेन या पतीली                                    
चौड़े मुंह वाली कांच की शीशी                            
250 ग्राम
125 ग्राम
एक 
दस 
एक 
एक
         
 बनाने की विधि -






ऑलियोलक्स बनाने के लिए एक फ्राइंग पेन या पतीली में 250 ग्राम एक्स्ट्रा-वर्जिन नारियल का तेल डाल कर चूल्हे पर रखें और गर्म करें। एक मध्यम आकार के प्याज के चार टुकड़े काट करके तेल में डाल दें और धीमी आंच पर तलें। 2-3 मिनट बाद उसमें 10 लहसुन की छिली कलियां भी डाल कर भूनना जारी रखें। 10-12 मिनट बाद जब प्याज और लहसुन अच्छी तरह भुन जाये और भूरा हो जाये तो गैस बंद कर दें और प्याज लहसुन को अलग कर दें। नारियल का तेल ठंडा होने पर 125 ग्राम अलसी के तेल में मिला लें और किसी चौड़े मुंह वाली कांच की शीशी में डाल कर फ्रीज में रख दें।  इसे आप 15-20 दिन तक काम में ले सकते हैं। 
लिनोमेल
लिनोमेल भी डॉ. बडविग की वैज्ञानिक परिकल्पना है। लिनोमेल का मतलब (Linomel – Linum = Linseed & Mel = Honey) शहद में लिपटी अलसी है। डॉ. बडविग ने पिसी अलसी की जगह लिनोमेल प्रयोग करने की सलाह दी है। लिनोमेल बनाने के लिए अलसी को पीस कर उसके हर दाने या कण के चारों तरफ प्राकृतिक शहद की एक पतली सी परत चढ़ा दी जाती है। जिससे अलसी लंबे समय तक खराब नहीं होती है। इसमें थोड़ा सा दूध का पावडर भी मिलाया जाता है और वह भी अलसी को सुरक्षित रखता है।  लिनोमेल सिर्फ जर्मनी में ही मिलता है। लेकिन आप चाहें तो इसे घर पर भी बना सकते हैं।  इसे बनाने के लिए आप 6 चम्मच अलसी के पॉवडर में 1 चम्मच शहद डाल कर चम्मच द्वारा  अच्छी तरह मिलाते रहे, जब तक आप आश्वस्त न हो जायें कि अलसी के हर कण पर शहद की परत चढ़ चुकी है। यह शहद की परत अलसी को हवा के संपर्क में नहीं आने देती है, जिससे वह खराब नहीं होती है। कम पड़े तो थोड़ा सा शहद और मिला सकते हैं। इसमें आप थोड़ा दूध का पावडर भी मिला सकते हैं।
बडविग का जादुई एलडी तेल
डॉ. बडविग ने कैंसर के उपचार के लिए ओम खंड के साथ साथ एक 1968 में एक विशेष तरह का इलेक्ट्रोन डिफ्रेन्शियल तेल  भी विकसित किया था, जिसे अंग्रेजी में वे ELDI Oil या एलडी तेल कहती थी। डॉ. बडविग का मानना है कि मानव का जीवन बीजों में सूर्य से प्राप्त हुई भरपूर इलेक्ट्रोन्स ऊर्जा पर निर्भर करता है। इसका जिक्र उन्होंने “कैंसर-द प्रोब्लम एन्ड द सोल्युशन” और अन्य पुस्तकों में किया है। उन्होंने लिखा है कि, “कैंसर सम्पूर्ण शरीर का रोग है, न कि किसी अंग विशेष का। सम्पूर्ण शरीर और कैंसर के मुख्य कारण का उपचार करके ही हम इस रोग से मुक्ति पा सकते हैं। अलसी तेल और पनीर कैंसर की गांठों और मेटास्टेसिस (स्थलांतर) को शरीर की रक्षा-प्रणाली को बढ़ा कर ही ठीक करता है। इस प्रक्रिया को और गति देने के लिए मैंने मालिश एवं बाहरी लेप (external application) हेतु इलेक्ट्रोन से भरपूर सक्रिय और प्रभावी फैटी एसिड युक्त एलडी तेल विकसित किया है। इलेक्ट्रोन हमारी कोशिकाओं की श्वसन क्रिया और हिमोग्लोबिन के निर्माण को बढ़ाते हैं। अमेरिका के पेन इन्स्टिट्यूट ने मेरे बारे कहीं लिखा है कि ये क्रेजी वूमन पता नहीं इस तेल में क्या मिलाती है, जो जादुई काम ये तेल करता है वो हमारी दर्द-नाशक दवाएं नहीं कर पाती हैं। जो रोगी मंहगा एलडी तेल नहीं खरीद सकते या जिन्हें उपलब्ध नहीं हो पाता, वे इसकी जगह अलसी का तेल प्रयोग कर सकते हैं।”
मालिश के फायदे 
प्राचीनकाल से ही मालिश कैंसर के उपचार का एक हिस्सा रहा है। शमां जल रही हो, हल्का संगीत बज रहा हो, अगरबत्ती की खुशबू से फिज़ा महक रही हो, ऐसे में अलसी या एल डी तेल से मालिश करवाना शरीर, मन और आत्मा को शान्ति और सुकून देता है। लेकिन मालिश करते समय यह जरूर ध्यान रखें कि जहां तकलीफ हो या दर्द हो उस जगह ताकत लगा कर नहीं मलना करना चाहिये। कैंसर के रोगी को अलसी या एल डी तेल की मालिश से कई फायदे होते हैं। 
•       मालिश से नकारात्मक भावना बाहर निकलती हैं, मन तनावमुक्त होता है और शरीर में ऊर्जा का संचार  होता है।  
•       प्रतिरक्षा प्रणाली सशक्त होती है और दर्द में राहत मिलती है क्योंकि मालिश से शरीर में लिम्फोसाइट्स, प्राकृतिक दर्द निवारक एन्डोर्फिन्स का स्राव बढ़ता है है। 
•       मालिश से शरीर का लसिका तंत्र या लिम्फेटिक सिस्टम उत्प्रेरित होता है, जिससे शरीर से दूषित पदार्थ बाहर निकलते हैं। लिम्फेटिक सिस्टम पूरे शरीर में फैला लसिका ग्रंथियों और महीन वाहिकाओं का एक जाल है जो कोशिकाओं को पोषक तत्व पहुंचाता है और दूषित पदार्थ बाहर निकालता है। यह एक प्रकार से हमारे शरीर के कचरे को बाहर फैंकने का काम करता है। इस तंत्र में हृदय भांति की कोई पंप जैसी संरचना नहीं होती है, बल्कि इसमें द्रव्य का परिवहन श्वसन या मांस-पेशियों की हरकत पर निर्भर करता है। मालिश से शरीर के दूषित पदार्थ बाहर निकलते हैं। 
अलसी के तेल की मालिश एवं पेक लगाने के निर्देश
एलडी-आर तेल से दिन में दो बार पूरे शरीर पर मालिश करें। कंधों, छाती, जांघ के ऊपरी हिस्से, कांख, संवेदनशील जगह जैसे आमाशय, यकृत आदि पर ज्यादा अच्छी तरह मालिश करें। तेल लगाने के बाद 15-20 मिनट तक लेटे रहें। इसके बाद बिना साबुन के गर्म पानी से शावर लें, यह गर्म पानी त्वचा के छिद्र खोल देगा और त्वचा में गहराई तक तेल का अवशोषण होगा।  इसके 10 मिनट बाद साबुन लगा कर दूसरी बार शावर लें और 15-20 मिनट तक विश्राम करें। लम्बे समय में आपको बहुत अच्छे परिणाम मिलेंगे।
आयल पेक लगाने के निर्देश
साफ सूती कपड़ा लें। उसे अंग के नाप के अनुसार काटें। इसे तेल में गीला करके अंग पर रखें, इसे ऊपर से पतले प्लास्टिक से ढकें और क्रेप बेन्डेज से बांध दें। रात भर बंधा रखे, सुबह खोल कर धोलें। आयल पेक का प्रयोग हफ्तों तक करें। इसके लिए भी  एलडी-आर तेल ही काम में लें। ऑयल पेक लगाने से स्थानीय तकलीफ जैसे दर्द में बहुत फायदा होता है।    
अलसी के तेल का एनीमा के लिए निर्देश
कैंसर के गंभीर रोगियों को शुरू में अलसी के तेल का एनीमा रोज देना चाहिये। डॉ. बडविग ने एनीमा के लिए स्पष्ट निर्देश नहीं दिये हैं। अतः रोगी की गंभीरता के अनुसार अपने विवेक से निर्णय लें। एनीमा लेने के लिए टॉयलेट या टॉयलेट के पास का कोई कमरा ही उचित रहता है। एनीमा केन रोगी के शरीर से एक या डेढ़ फुट ऊँची होनी चाहिये। ट्यूब के नोजल पर कोई चिकनाई जैसे वेसलीन या या अलसी का तेल लगाना चाहिये ताकि वह बिना किसी तकलीफ के मलद्वार में घुस सके। तेल का एनीमा लेने के पहले 2 से 4 कप स्वच्छ हल्के गुनगुने या ठंडे पानी का एनीमा देना चाहिये, जिससे आंतें साफ हो जाये। पानी डिस्टिल्ड या अक्वा-गार्ड का प्रयोग करें। यदि एनीमा लेने समय दर्द हो तो थोड़ी देर के लिए ट्यूब की घुन्डी बंद कर दें और दर्द बंद होने पर पुनः खोल दें। पानी के एनीमा को ज्यादा देर रोकने की जरूरत नहीं होती है। पूरा पानी अन्दर जाने के बाद आप कोमोड पर दस मिनट शान्ति से बैठे रहें। आंतों को खाली होने में समय लगता है। 
इसके बाद लगभग 200 से 250  ml तेल एनीमा केन  में भर कर मल द्वार में डालें। ट्यूब में मौजूद हवा को निकलने में भी लगभग पांच मिनट का समय लग जाता है। रोगी को कोहनियों और घुटनें के बल उलटा करें और कूल्हे उठे हुए रहें। जब सारा तेल अंदर चला  जाये तो रोगी को 15 मिनट तक दांई तरफ से, फिर 15 मिनट तक बांई तरफ से लेटा दें। इस समय रोगी तनावमुक्त भाव में लेटा रहे और संगीत, टीवी या अखबार पढ़ने में स्वयं को व्यस्त रखे। शुरू में तेल को इतनी देर रोकना आसान नहीं होता है। लेकिन कुछ दिनों में रोगी को अभ्यास हो जाता है। तेल गाढ़ा होता है इसलिए कभी-कभी एनीमा केन को थोड़ा ऊपर लटकाना पड़ता है। इसके बाद रोगी गुदा को खाली करें और अच्छे से धोले। तेल का एनीमा बड़ी सीरिंज से भी दिया जा सकता है और सीरिंज की टिप रबर की उपयुक्त रहती है। अन्त में रोगी कोमोड पर 15 मिनट तक शान्ति से बैठ जाये और फिर मल-द्वार को स्वच्छ करले।
कॉफी एनीमा
बडविग आहार में वैसे तो कैंसर के रोगी को कॉफी नहीं पीनी चाहिये लेकिन कॉफी एनीमा दर्द-निवारण और यकृत के निर्विषिकरण (Detoxification) हेतु प्रमुख उपचार है। इसे सर्व प्रथम 1930 में डॉ. मेक्स जरसन ने  कैंसर के उपचार के लिए विकसित किया था। इस एनीमा में कॉफी के घोल की थोड़ी मात्रा लगभग 2 या तीन कप ही मलद्वार में डाली जाती है, सिगमॉयड कोलोन तक ही पहुंचती है। कॉफी एनीमा से खनिज-लवण और विद्युत अपघट्य का नुकसान नहीं होता है, क्योंकि मल से इनका पुनरअवशोषण सिगमॉयड कोलोन से पहले ही हो जाता है। यह एनीमा उनके लिए भी सुरक्षित है जिन्हें कॉफी से ऐलर्जी होती है क्योंकि सामान्य परित्थितियों में इसका रक्त में अवशोषण नहीं होता है।
कॉफी में मौजूद केफीन यकृत और पित्ताशय को ज्यादा पित्त स्राव करने के लिए प्रेरित करता है। यकृत और छोटी आंत शरीर के टॉक्सिन, पोलीएमीन, अमोनिया और मुक्त कणों को निष्क्रिय करते हैं।  कॉफी में थियोफाइलीन और थियोब्रोमीन होते हैं जो पित्त वाहिकाओं का विस्तारण कर दूषित कैंसर-कारी तत्वों का विसर्जन सहज बनाते हैं और प्रदाह (Inflammation) को शांत करते है।  कॉफी में विद्यमान कावियोल और केफेस्टोल यकृत में पामिटेट एन्जाइम ग्लुटाथायोन एस-ट्रांसफरेज़  तंत्र को उत्साहित करते हैं। यह तंत्र यकृत में ग्लुटाथायोन का निर्माण करता है जो महान एन्टीऑक्सीडेन्ट है और  कैंसर-कारक मुक्त कणों और दूषित पदार्थों को निष्क्रिय करता है।  कॉफी एनीमा इस तंत्र की गतिविधि में 600% -700% तक की वृद्धि करता है। सामान्यतः एनीमा को 15 मिनट तक रोका जाता है। इस दौरान यकृत की वाहिकाओं में रक्त तीन बार  चक्कर लगा लेता है अतः रक्त का बढ़िया शोधन भी हो जाता है।  
सामान्यतः कॉफी एनीमा पहले सप्ताह रोजाना लेना चाहिये। यदि दर्द हमेशा बना रहता हो तो दिन में एक से ज्यादा बार भी ले सकते हैं। दूसरे सप्ताह हर दूसरे दिन एनीमा लेना चाहिये, तीसरे सप्ताह दो या तीन बार ले सकते हैं। बाद में सप्ताह में एक बार तो एनीमा लेना ही चाहिये। 
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Cancer Treatment मुशकिल है पर नामुमकिन नही।
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